बिजावर / संवाददाता
नगर परिषद बिजावर सीएम हेल्पलाइन में दूसरा स्थान प्राप्त कर वाहवाही लूट का अपनी पीठ स्वयं ही थपथपा रही है किंतु ज़मीनी सच्चाई यह है कि कार्यालयीन कार्यों में फिसड्डी सिद्ध हो रही है जिसका जीवंत उदाहरण यह कि सूचना के अधिकार के आवेदनों का निराकरण नही किया जाता, नामांतरण रिकॉर्ड दुरुस्त महीनों तक नही होता, आवास अधर में लटके रहते हैं और सबसे बड़ी बात की सरकारी कुएं तक को लापता कर दिया जाता है किंतु सीएम हेल्पलाइन के प्रकरणों का निपटारा तुरंत किया जाता है क्योंकि हेल्पलाइन पर की गई शिकायतों का फीडबैक बरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचता है किंतु स्थानीय लोगों की समस्याएं केवल घर से नगर परिषद तक ही घूमती रहतीं हैं।
सूचना का अधिकार अधिनयम के आवेदन-
प्राप्त जानकारी में अनुसार नगर परिषद बिजवार में सूचना के अधिकार के माध्यम जो जानकारी मांगी जाती है वो लोगों को अक्सर अप्राप्त ही रहती है चूंकि परिषद का प्रथम अपीली अधिकारी सागर में बैठता है जहाँ सभी आवेदक पहुंचने में असमर्थ रहते हैं क्योंकि बिजवार से सागर की दूरी लगभग 150 किलोमीटर है इसलिये नगर परिषद सूचना के अधिकार के आवेदनों का निराकरण न ही समयावधि में करती है और न ही उचित जानकारी प्रदान करती। अभी हालांकि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत जानकारी उपलब्ध न कराने के संबंध में नगर परिषद बिजवार का एक मामला मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में भी लंबित पड़ा हुआ है अब देखना यह है कि उच्च न्यायालय पीठ जबलपुर उक्त प्रकरण में अपना क्या फैसला सुनाती है ज्ञात ही कि एक बार पहले भी म.प्र. उच्च न्यायालय जबलपुर ने अपना फैसला आवेदक के पक्ष में ही सुनाया था जिसको नगर परिषद बिजवार द्वारा नजरंदाज कर दिया गया था जिसकी एक बार पुनः अपील की गई है। इन सब घटनाक्रमों से एक बात तो सिद्ध होती है कि नगर परिषद के कर्मचारियों को किसी का भी डर व्याप्त नही है और शायद ऐसा तभी संभव है जब इनको कोई राजनैतिक संरक्षण प्राप्त हो।
अन्य कार्य-
लोगों के अनुसार नामांतरण के आवेदन महीनों तक लंबित पड़े रहते हैं जिनकी कोई खोज खबर नही की जाती, जैसे तैसे अगर नामांतरण प्रक्रिया पूर्ण हो भी जाती है तो उसके बाद महीनों तक रिकॉर्ड दुरुस्त नही किया जाता जिसके लिए आवेदकों महीनों चक्कर काटने पड़ते हैं भवन कर आदि जमा करने के लिए परेशान होना पड़ता है किंतु बिभाग में उनकी कोई सुनवाई नही होती है। जिसका एक कारण यह भी हो सकता है कि मुख्य नगर पालिका अधिकारी के पास एक साथ दो-दो, तीन-तीन नगर परिषदों का पदभार रहता है इसलिए वो किसी एक पर अपना ध्यान केंद्रित नही कर पाते हैं जिससे कर्मचारी बेलगाम हो गए हैं। हालांकि मुख्य नगर पालिका अधिकारी की कार्यकुशलता पर शंका नही की जा सकती है क्योंकि अगर ऐसा होता तो शासन-प्रशासन उनको दो-दो, तीन-तीन परिषदों का पदभार दे कर जेम्स- बॉन्ड क्यो बनाते।