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May 18, 2024
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महाराष्ट्र

मातृ दिवस पर अग्निशिखा का कवि सम्मेलन व सम्मान समारोह सम्पन्न

गायत्री साहू,

मुम्बई। अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच द्वारा विगत 30 वर्षो से सामाजिक व साहित्यिक कार्यक्रम सम्पन्न हो रहा है। संस्था की अध्यक्ष अलका पाण्डेय ने बताया कि मंच के माध्यम से हम विविध कार्यक्रम करते हैं। मेरी माँ, मातृ दिवस के उपलक्ष्य में ऑनलाइन ही सही मां का उत्सव तो मनाया गया। हर मां के लिये यह आयोजन किया गया। मातृ दिवस के उपलक्ष्य में माँ की यादों के रंग में डूबा कवि सम्मेलन में सबने माँ को याद किया और शब्दों के सुमन अर्पित करते हुये माँ शारदे की स्तुति के साथ शुभारंभ हुआ। मंच संचालन अलका पाण्डेय, शोभारानी तिवारी और सुरेन्द्र हरड़ें ने किया। कार्यक्रम के समारोह अध्यक्ष राम रॉय, मुख्य अतिथि पुरुषोत्तम दुबे, विशेष अतिथि आशा जाकड, संतोष साहू, जनार्दन सिंह, शिवपूजन पांडेय और पी. एल. शर्मा रहे तथा स्वागत वैष्णो खत्री ने किया। सभी कवियों ने शानदार कविताओं की प्रस्तुति दी।
काव्य पाठ वाले कवि में अलका पाण्डेय, देवी दीन अविनाशी, हेमा जैन, रानी अग्रवाल, नीरजा ठाकुर, वीना अचतानी, वैष्णो खत्री, चंदा डांगी, ओम प्रकाश पांडेय, सुषमा शुक्ल, शोभा रानी तिवारी, अनिता झा, पुष्पा गुप्ता, रविशंकर कोलते, बृज किशोरी त्रिपाठी, विजेन्द्र मोहन, सरोज लोडाया, सुरेन्द्र हरड़ें, कुमकुम वेद, डॉ अंजुल कंसल, वंदना शर्मा, आशा नायडू, मीना त्रिपाठी, रामेश्वर प्रसाद गुप्ता, सरोज दुगड, निहारिका झा, अंजली तिवारी, सुनीता अग्रवाल, ऊषा पांडेय थे जिन्हें सम्मान पत्र देकर स्वागत किया गया। अंत में अलका पाण्डेय ने सभी को धन्यवाद देते हुए कहा कि माँ है तो हम है, माँ का सदा सम्मान करना चाहिये उन्हें हमेशा याद कर उनकी अच्छाईयों से हमें प्रेरणा मिलती है।
प्रस्तुत है कुछ रचनाकारों की कुछ पंक्तियां :-

माँ – ममता की छाँव
ममता की छाँव का वटवृक्ष है माँ।
आंचल का छत्र बना प्यार की छाँव देती है माँ ।
धरा की सौंधी माट्टी का एहसास है माँ।
सागर की गहराई का आभास है माँ
सूरज की ऊष्मा का संचार है माँ
चाँद की शितलता का अनुमान है माँ
गुलाब सी महकती है माँ
कलियों सी कोमल है माँ
गंगा जल सी पावन है माँ
हिमालय सी अडिग है माँ
आम की मिठास है माँ
रसोई में पकवान है माँ
चोट का मलहम है माँ
हर रोग की दवा है माँ
भोर की ठंडी-ठंडी बयार है माँ
रज़ाई की नर्म-नर्म गर्माहट है माँ
ठंडी में दोपहर की गुन – गुनी धूप है माँ
रात को जग -मग करता जुगनू है माँ
सहनशीलता की मिशाल है माँ
त्याग बलिदान का पाठ है माँ
बच्चों की प्रथम पाठशाला है माँ
क़ुर्बानी की अद्भुत मशाल है माँ

  • अलका पाण्डेय

मां एक शब्द है, रुप से छोटा है
आत्मा से निकलता है।
ब्रह्मांड से बड़ा है, मां कोई पुस्तक नहीं, वह जीवन ग्रंथ है।

  • सुरेंद्र हरडे

माॅं तुम हो तो मैं हूंँ
तुमसे ही है मेरी दुनियॉं
इस जहाँ में लाई हो तुम मुझे
इसका कर्ज उतारुंगी कैसे

  • नीरजा ठाकुर नीर

मां ओ मां! तुम्हारी प्यारी सूरत,
भुलाई नहीं जाती ये न्यारी मूरत,
तुमने दिया जो हमें लाड प्यार,
कैसे भुलाएं मां तेरे उपकार?

  • रानी अग्रवाल

यह दुनिया है तेज धूप
बस मां तो छांव होती है
इस दुनिया का सबसे सुंदर
यह वरदान होती है
जब जीवन में हो अँधियारा, दीपक बन राह दिखाती हो।
काँटों पे चलकर भी तुम, हमको अभय दान दे जाती हो।

  • वैष्णो खत्री वेदिका

हाँ माँ
तेरी कृपा से रचा संसार
तेने ही दिया शब्दों का भंडार।
जब से होश संभाला
तब पहला शब्द माँ ही निकला मुँह से

  • चन्दा डांगी

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