40.1 C
Madhya Pradesh
May 11, 2024
Bundeli Khabar
Home » भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया
देश

भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया

खौफ पैदा करने वाले गिरोह को करना होगा बेनकाब

कोरोना महामारी पर विशेषज्ञों ने एक बार फिर चौंकाने वाले बयान देकर आम आवाम में दहशत पैदा कर दी है। कुछ हफ्तों के बाद कोरोना की नई लहर आने की संभावना भरी उद्घोषणा से निराशा, हताशा और अनजाने डर का माहौल पैदा हो गया है। लाक डाउन खुलने के बाद रोजगार के अवसर तलाशने वाले नाउम्मीद होने लगे हैं। महामारी के तांडव के पीछे जितना वायरस उत्तरदायी है उससे अधिक खौफ पैदा करने वाले विशेषज्ञों की भूमिका है। प्रचार माध्यमों से स्वयं की पहचान बनाने की लालसा रखने वाले नित नई कहानियां गढकर सुर्खियां बटोरने में लगे हैं। विशेषज्ञों को यदि इतना ही ज्ञान है तो फिर वे सरकारों के साथ मिलकर चुपचाप अनुसंधान में क्यों नहीं जुटते। दिन के ज्यादातर घंटे टीवी चैनल से लेकर अन्य संचार माध्यमों को देने वाले विशेषज्ञों का एक बडा दल नागरिकों में निरंतर मौत का डर पैदा कर रहा है। यह डर ही अफरा तफरी का माहौल बनाता है। मौसम के बदलते मिजाज के साथ आने वाले बुखार को लेकर भी बडे-बडे अस्पताल कोरोना से लेकर ब्लड कल्चर तक की महगी जांचें करवाने लगते हैं। वातानुकूलित संस्कृति में आंखें खोलने वाले साधरण सर्दी-जुकाम से भी भयभीत हो जाते हैं। इस वर्ग का खुला शोषण पांच सितारा चिकित्सालयों में हो रहा है और दूसरा वर्ग वह है जो कोरोना के नाम पर मुफ्तखोरी की आदत में जकड चुका है। फ्री में राशन से लेकर अन्य सरकारी सहायताओं का लाभ उठाने वाले कथित गरीब लोगों की भीड दारू की दुकानों से लेकर मंहगे दामों पर गुटका-सिगरेट खरीदने हेतु देखी जा रही है। प्रशासनिक अमला महामारी काल का फायदा उठाकर नियमित दायित्वों से चिंतामुक्त हो चुका है। पटवारियों से लेकर शिक्षकों-प्रोफेसरों तक की अघोषित छुट्टियां निरंतर लम्बी होती जा रहीं है। अनेक सरकारी विभागों का फील्ड वर्क शून्य है। फील्ड आफीसर अपने फील गुड करने में जुटे हैं। लालफीताशाही को प्रतिमाह पुरस्कार के रूप में बिना काम के दाम मिल रहे है। उन्होंने एक भी माह का वेतन कोरोना से निपटने हेतु दान नहीं किया है। वहीं विपक्ष के हाथों में कोरोना एक मुद्दा बनकर लहरा रहा है। किसी भी विपत्ति के अवसर पर सभी राजनैतिक दलों को एक साथ मिलकर निदान के उपायों हेतु प्रयास करना चाहिये मगर भारत गणराज्य में सीमा पर होने वाली शहादतों से लेकर महामारी तक को वोट बैंक बनाने की जुगाड में रहने वाले अनेक सफेदपोश आपसी वैमनुष्यता फैलाने का काम करते हैं। विवादास्पद बयान जारी करते हैं। कही सामुदायिक झगडों की स्क्रिप्ट लिखी जाती है तो कहीं मनगढन्त आरोपों को हवा दी जाती है। तीसरी लहर आये या न आये परन्तु उसका प्रभाव अभी से देखने को मिलने लगा है। डरे सहमें लोग, जो घर से निकलने का साहस कर रहे थे, वे भी अब आगामी खतरे को देखकर घरों में कैद होकर रह गये हैं। अंग्रेजी दवाइयों का कारोबार बढ चला है। लोगों को बीमारियों में अवसर दिखाई देने लगे है। दवाइयों के वास्तविक मूल्यों का निर्धारण करने वाली इकाई स्वयं आईसीयू में भर्ती हो गयी है। कौन सी दवा कितने दाम पर बेचने के लिए अधिकृत है, उसमें संमिश्रित होने वाला रसायन वास्तव में किसने मूल्य का है। इसके मापदण्ड हवा में तैर रहे हैं। यह तो रही दवा बनने वाली कम्पनियों का मायाजाल। अस्पतालों के लम्बे-लम्बे बिलों के अलावा वहां का स्टाफ भी अपने पौ बारह करने से पीछे नहीं रहता। भर्ती होने वाले मरीज के परिजनों को अस्पताल के ही मेडिकल स्टोर से दवाइयां लाने पर बाध्य किया जाता है। ताकि मनमानी कम्पनियों की आवश्यक-अनावश्यक औषधियों की बिक्री का लक्ष्य पूरा करके बोनस पाया जा सके। खरीदी गई दवाइयां भर्ती मरीज के पास रखी टेबिल पर एक डिब्बे में रख दी जाती है। अब शुरू होती है नर्सिंग स्टाफ की कारगुजारी। कितने इंजेक्शन लग रहे हैं, कितने बोतल में डाले जा रहे हैं, कितनी औषधियां उपयोग में आईं है। कुछ भी जानकारी मरीज या उनके परिजनों को नहीं दी जाती। भर्ती की फाइल का रिकार्ड भी मरीज से दूर रखा जाता है। भर्ती से लेकर छुट्टी तक की चिकित्सीय गतिविधियों को छुपाकर छुट्टी के दौरान केवल डिस्टार्ज पर्चा पकडा दिया जाता है। अंग्रेजी पध्दति को चुनौती देने वाले आयुर्वेद के विशेषज्ञों पर दवा माफियों की शह पर उनके खास सफेद कोट वाले कूद पडते हैं। सीनियर डाक्टरों को तो निजी क्लीनिक से ही फुर्सत नहीं होती। ऐसे में जूनियर डाक्टरों की फौज को एलोपैथी माफिया हडताल की जंग में खडा कर देते हैं। सरकारें झुकने के लिए बाध्य हो जातीं है। यह घटनायें एलोपैथिक पध्दति से जुडे सभी डाक्टरों, नर्सिग स्टाफ, दवा निर्माताओं आदि पर लागू नहीं होती। अनेक मानवतावादी भी हैं जो अपनी जान जोखिम में डालकर मरीजों की तामीरदारी में जुटे हैं। पूरे घटना चक्र से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि लोगों में खौफ पैदा करने वाले गिरोह को करना होगा बेनकाब, लगाना होगी डर पैदा करने विचार मंथनों पर रोक और वापिस लाना होगा नागरिकों का खोया आत्म विश्वास। तभी कोरोना जैसे वायरस का हौवा समाप्त होगा और लौटेगी खुशहाल जिंदगी। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

Related posts

अपनी दरियादिली की फिर मिसाल पेश की देश के अनमोल रतन ने

Bundeli Khabar

तुर्की आपदा की मदद के लिए अपोलो हॉस्पिटल्स – लाइफसाइन्स की साझेदारी

Bundeli Khabar

मातामृत्यू रोखण्यासाठी ठाणे जिल्हा परिषदेचे महत्वपूर्ण पाऊल

Bundeli Khabar

Leave a Comment

error: Content is protected !!