जबलपुर/ब्यूरो
दिव्यांग छात्र अपने पिता के साथ पहुंचा था जिला कलेक्टर ऑफिस
दिव्यांगता अभिशाप नहीं है, क्योंकि सरकार और प्रशासनिक अमला पूरी सहानभूति के साथ उनके साथ खड़ा है। समय-समय पर दिव्यांगों के उत्थान के लिए काम होता है। लेकिन मंगलवार को कलेक्ट्रेट में जो दृश्य देखने को मिला उससे तो लग रहा है कि जबलपुर में दिव्यांगों के साथ मजाक किया जा रहा है। पिता के कंधों पर बैठकर कलेक्टर से मिलने पहुंचे कुंडम के मखरार निवासी दिव्यांग सुकरण की कहानी जिसने भी सुनी वह स्तब्ध रह गया।
दरअसल दिव्यांग सुकरण को स्कूल आने-जाने के लिए ट्रायसाइकिल चाहिए थी वह इस पाने के लिए कई सालों से संघर्ष कर रहा था। स्थानीय स्तर के अधिकारियों ने जब उसे ट्रायसाइकिल उपलब्ध नहीं कराई तो वह पिता के कंधों पर सवार होकर 70 किलोमीटर कुुंडम के मखरार गांव से जबलपुर चला आया। यहां पहुंचकर दिव्यांग छात्र ने कलेक्टर को पूरी व्यथा सुनाई। कलेक्टर ने दिव्यांग की बातों को गंभीरता से लेते हुए तत्काल उसे ट्रायसाइकिल उपलब्ध कराई।
छात्र ने बताया कि अपने गांव से स्कूल के लिए उसे 5 किलोमीटर तक का सफर करना पड़ता है। कभी बस से तो कभी जीप से छात्र सुकरन को मखरार से मड़ई गाँव तक पढऩे के लिए आना पड़ता है। कई बार तो ऐसे हालात बने कि सुकरन को मड़ई गाँव से बस नही मिलती थी तो वह अपने दोस्त के यहां रुक जाता था।
कलेक्टर ने घुटने में बैठकर सुनी समस्या
जिस तरह सुकरण अपने पिता के कंधों पर सवार ट्रासाइकिल पाने के लिए जबलपुर तक पहुंचा ऐसे बहुत से दिव्यांग होंगे जो प्रशासनिक पंगुता के कारण सरकार की सुविधाओं से वंचित है। घुटने पर बैठकर कलेक्टर ने दिव्यांग छात्र की समस्याएं सुनी।