32.7 C
Madhya Pradesh
May 17, 2024
Bundeli Khabar
Home » वेदना से संवेदना तक ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’
मनोरंजन

वेदना से संवेदना तक ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’

गायत्री साहू,

फिल्म समीक्षा – तीन स्टार

गंगूबाई मुम्बई की माफिया क्वीन सुनने से लगता है कि नकारात्मक छवि की महिला होगी पर कीचड़ में खिले कमल की भांति अपने उत्तम व्यक्तित्व और आत्मविश्वास को उजागर करती महिला थी। मशहूर पत्रकार और लेखक एस हुसैन जैदी की किताब ‘माफिया क्वीन ऑफ मुम्बई’ से प्रेरित होकर निर्देशक संजय लीला भंसाली ने ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ फिल्म का निर्माण किया है। यह फिल्म सत्य घटना पर आधारित हैं किंतु फिल्म से जुड़े कुछ तथ्यों के कारण यह विवाद का मुद्दा भी बनी। जिसमें गंगूबाई के परिवार ने आरोप लगाया कि उनकी माँ की छवि को वेश्या के रूप में दिखाकर फिल्म निर्माताओं ने उनकी सामाजिक छवि धूमिल कर दी है। गंगूबाई एक सामाजिक कार्यकर्ता थी। लेकिन इन सब से अलग गंगूबाई काठियावाड़ी रुपहले पर्दे पर रिलीज़ हो चुकी है।

एक उच्च और संपन्न परिवार की इकलौती पुत्री गंगा से वेश्यावृत्ति करने वाली गंगू और देश तथा समाज को आइना दिखाने वाली गंगूबाई काठियावाड़ी की अनोखी कहानी है फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’। जिसमें गंगूबाई की अहम भूमिका अभिनेत्री आलिया भट्ट ने निभाई है। यह कहानी लगभग 60-70 के दशक की है। काठियावाड़ बैरिस्टर हरजीवनदास की सोलह वर्षीय पुत्री जिसे फिल्मों में काम करने का शौक था। जिसका सपना था कि वह मुम्बई जाकर फिल्म स्टार देवानंद के साथ काम करे। उसके इसी शौक के कारण उसकी पूरा जीवन अंधकारमय हो गया। रमणीक लाल के प्रेमजाल में फंस कर फिल्म अभिनेत्री बनने अपने परिवार को धोखा देकर मुम्बई आ जाती है। यहाँ रमणीक कमाठीपुरा में शीला मौसी (सीमा पाहवा) को महज हजार रुपये में बेच कर चला जाता है। एक रंगीन दुनिया में जीने वाली लड़की की दुनिया पल भर में बेरंग हो जाती है। मजबूरी में वह वेश्यावृत्ति करने लगती है लेकिन उसके अंदर में बदले की आग धड़क रही है।

एक दिन एक गुंडा गंगूबाई के पास आता है और उस पर अत्याचार करता है जिससे वह जीवन और मौत के बीच झूलती है। उसके बदले की भावना चरमसीमा तक पहुँच जाती है किंतु शारिरिक रूप से लाचार वह करे भी क्या? तभी वह हिम्मत करके मुम्बई के मशहूर डॉन करीम लाल फिल्म में रहिम लाला (अजय देवगन) के पास मदद की याचना लेकर पहुंच जाती है। उसकी हिम्मत रंग लाती है और रहीम लाला उसकी मदद को तैयार हो जाता है। रहीम लाला को वह अपना भाई मानती है और उसी की सहायता, अपनी हिम्मत और सूझ बूझ से पहले अपने चकले की घरवाली फिर कमाठीपुरा की प्रेसिडेंट और आगे समाजसेविका बन जाती है। उसके जीवन में बेइंतिहा संघर्ष, दर्द और त्याग भरा हुआ है। वह अपने आत्मविश्वास के सहारे प्रधानमंत्री नेहरू से भी मिलती है और वेश्याओं के हक की बात भी करती है। फिल्म में कई अनछुए पहलू और दर्द की पराकाष्ठा को दिखाया गया है। इसमें गंगूबाई से जुड़े कई रोचक तथ्य भी हैं जिसे सिनेमा में देखकर ही महसूस किया जा सकता है। इसमें गंगूबाई का एक अल्हड़ प्रेमी अफसान रज्जाक खान (शांतनु माहेश्वरी) है। गंगूबाई से प्रतिशोध लेने वाली ट्रांसजेंडर रजिया बाई है (विजय राज) जो कमाठीपुरा की प्रेसिडेंट बनना चाहती है। गंगूबाई के दर्द को समझने वाली एक मात्र सहेली कमली (इंदिरा तिवारी) जो खुद गंगू की भांति वेश्यावृत्ति के भंवर जाल में फंसी है। उर्दू पत्रकार फैजी (जिम सरभ) जो हर मुमकिन कोशिश करते हैं कि गंगूबाई की आवाज दुनिया के सभी लोगों तक पहुंचे। ऐसे कई किरदार है जो गंगूबाई के जीवन कथा को जीवंत बनाते हैं।

फिल्म का संगीत संचित और अंकित बल्हारा का है। इसमें रोमांटिक गीत, कव्वाली, गजल और गुजराती फॉक गीत ‘ढोलिड़ा’ है जो श्रोताओं को पसंद आ रही है। फिल्म का बैकग्राउंड संगीत भी फिल्म के दर्द और गति का साथ देता है। हुमा कुरैशी का कव्वाली गीत फिल्म में नई जान डाल देता है। फिल्म के फिल्मांकन की बात करें तो संजय लीला भंसाली की अन्य फिल्मों की तरह भव्यता भरी हुई है। हम दिल दे चुके सनम, पद्मावत, सांवरिया, बाजीराव मस्तानी, देवदास, रामलीला फिल्म की भांति भव्यता की कोई कमी नहीं है। कमाठीपुरा के साठ दशक पूर्व का बेहतरीन चित्रण फिल्म में मनमोहक जान पड़ता है। उस समय की छोटी छोटी बारीकियों का पूरा ध्यान रखा गया है। उस जमाने के फिल्मों के पोस्टर और देवानंद की तस्वीर हमें पुराने दुनिया में पहुँचा देता है।

फिल्म को देखने पर ऐसा महसूस होता है कि हम उसी दौर में वापस लौट गए हैं। एक स्त्री और एक वेश्या के दर्द को बेहद संजीदा तरीके से दिखाया गया है। पर्दे पर मानवीय भावनाओं के सजीव चित्रण करने में संजय लीला भंसाली को महारत हासिल है। उनकी बराबरी करना नामुमकिन है। सभी किरदारों ने बेहतरीन अभिनय किया है, जिसमें इंदिरा तिवारी का वेश्या कमली की भूमिका निभाना, अनुभवी कलाकार सीमा पाहवा और विजय राज की बेमिसाल अदाकारी जो कहानी का रुख ही मोड़ देती है। और सबसे स्पेशल अभिनेता अजय देवगन जिनकी आंखे ही सब बयां कर देती है। फिल्म गंगूबाई काठियावाड़ी की चर्चा हो रही है उसमें पर्दे पर गंगूबाई बनी अभिनेत्री के बारे में ना कहे ऐसा कैसे हो सकता है।

‘राज़ी’ फिल्म के बाद गंगूबाई काठियावाड़ी में अभिनय करना आलिया के लिए मील का पत्थर है उनकी एक्टिंग की कालजयी बन गयी है। जैसे उमराव जान की रेखा वैसे ही गंगूबाई। फिल्म में आलिया भट्ट की बॉडीलैंग्वेज और संवाद फिल्म से पहले ही दर्शकों के दिलों में बस गए हैं। सफेद साड़ी में इतराकर चलती गंगूबाई बेहद खूबसूरत लगती है। ढोलिड़ा गीत में गंगूबाई की झलक पुरानी फिल्म प्रेमरोग के अभिनेत्री नंदा की खूबसूरती याद दिला देता है।

‘आपकी इज़्ज़त एक बार गई तो गई, हम रोज़ रात को इज़्ज़त बेचती हैं, साली ख़त्म ही नहीं होती’, ‘कुंवारी आपने छोड़ा नहीं और श्रीमती किसी ने बनाया नहीं’, ‘मां का नाम काफ़ी नहीं है न? चलो बाप का नाम देवानंद’, ‘इज़्ज़त से जीने का, किसी से डरने का नईं, न पुलिस से, न एमएलए से, न भ*वों से, किसी के बाप से नहीं डरने का’, ‘लिख देना कल के अख़बार में आज़ाद मैदान में भाषण देते वक़्त गंगू बाई ने आंखें झुकाकर नहीं आंखें मिलाकर अपने हक़ की बात की है’, ‘अरे जब शक्ति, संपत्ति और सद्बुद्धि तीनों ही औरतें हैं तो इन मर्दों को किस बात का गुरुर’।
इनमें से कई संवाद महिलाओं और समाज की परिस्थितियों से जुड़ी हुई पुरानी रूढ़िवादियों और परम्पराओं को बखूबी तोड़ते हैं।

फिल्म में कई सकारात्मक पक्ष है तो कुछ कमी भी है। फिल्म में कई चरित्रों के मेकअप बड़े अतरंगी लगते हैं जैसे रजिया, शीला और कहीं कहीं गंगूबाई के किरदार में। प्रधानमंत्री नेहरू से मुलाकात में भी कुछ कमी महसूस होती है आगे कुछ और देखना ज्यादा रोचक होता। आज के संदर्भ में बालविवाह और कम उम्र में प्रेग्नेंसी को फिल्म में दिखाया जाना असहज सा लगता है। फिल्म में शराब, शबाब और अपशब्द भी हैं लेकिन उसमें अश्लीलता की चादर कम है इसलिए रुपहले पर्दे पर देखा जा सकता है। शायद यह युवा वर्ग के दर्शकों को आकर्षित करने में सफल होगी।

Related posts

संजय दत्त, राजीव कपूर अभिनीत ‘तुलसीदास जूनियर’ का ट्रेलर हुआ रिलीज़

Bundeli Khabar

जिमी शेरगिल और नावेद जाफरी ने लॉन्च किया कैनाज़ परवेज़ का ‘सिटी मत मार’ म्यूजिक वीडियो

Bundeli Khabar

फिल्म ’83’ के वर्ल्ड टेलीविजन प्रीमियर के पहले पंकज त्रिपाठी ने एक बात बतायी कि क्यों निकले थे उनके आंखों से आंसू

Bundeli Khabar

Leave a Comment

error: Content is protected !!