पाटन/संवाददाता
बसंत पंचमी अर्थात माँ सरस्वती जी का जन्मदिवस वसंत पंचमी (माघ शुक्ल ) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है, वसंत पञ्चमी या श्रीपंचमी एक हिन्दू त्यौहार है, इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करते हैं। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।
प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं, कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।
गैरतलब है कि प्रतिबर्ष सरस्वती शिशु मंदिर पाटन में छोटे बच्चों का विद्या आरंभ संस्कार कराया जाता है जिसके साथ ही बच्चों का शिक्षा दीक्षा कार्य प्रारंभ हो जाता है शिशु मंदिर के आचार्यों द्वारा सरस्वती माँ की वंदना के साथ पूजन किया एवं बच्चों को पेंसिल से तख्ती पर ॐ लिखवा कर विद्या आरंभ संस्कार कराया गया।