.सागर के मोती नगर थाने का मामला
.शिकायतकर्ता को अपराधी एवं अपराधी को बनाया गवाह
दिल्ली / ब्यूरो
भारत देश के सर्वोच्च न्यायालय ने म.प्र. पुलिस की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह अंकित किया है, एवं मध्यप्रदेश की निचली अदालत तथा म.प्र. उच्च न्यायालय पर भी टिप्पणी की है क्योंकि मध्य प्रदेश पुलिस की कारस्तानी से तीन निर्दोष व्यक्तियों को हत्या जैसे संगीन मामले में उम्रकैद जैसी सजा सुना दी गई जिसको म.प्र. उच्च न्यायालय द्वारा भी यथावत रखा गया। सागर पुलिस द्वारा शिकायतकर्ता को ही अपराधी बना कर पेश कर दिया एवं अपराधियों को गवाह बना दिया, जिसके चलते न्यायलय ने तीनों निर्दोष लोगों को उम्र कैद की सजा से दंडित कर दिया।
एक नज़र मामले पर:
सागर में बर्ष 2008 में मोतीनगर थाना के अंतर्गत एक हत्या का प्रकरण दर्ज किया गया था जिसमे सहोदरा बाई द्वारा शिकायत की गई थी कि रुईया और उसके साथियों ने मिलकर उसके देवर पप्पू की हत्या कर दी किन्तु पुलिस ने उत्कृष्ट श्रेणी की विवेचना करते हुए उल्टा सहोदरा बाई और उसके पति व भाई को ही अपराधी बना दिया एवं रुईया व उसके साथियों को गवाह के तौर पर पेश कर दिया, विवाद केवल 250 रु. के लेनदेन का था, उक्त प्रकरण में निचली अदालत ने पुलिस की कहानी पर विश्वास करते हुए सहोदरा बाई एवं उसके पति व भाई को उम्र कैद की सजा सुना दी थी जिसको म.प्र. उच्च न्यायालय द्वारा भी यथावत रखा गया था जिसके बाद उक्त प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने:
सर्वोच्च न्यायालय की जस्टिस इंदिरा बनर्जी एवं जस्टिस बी रामा सुब्रह्मण्यम की बेंच ने मामले को गंभीरता से लेते हुए आवेदकों को उम्रकैद की सजा से बरी कर दिया, एवं सुप्रीम कोर्ट की बेंच द्वारा म. प्र. पुलिस को कड़ी फटकार लगाई गई, बेंच द्वारा कहा गया कि निचली अदालत एवं हाई कोर्ट ने अपने दायित्व का निर्वहन सही ढंग से नही किया, किसी तकनीकी आधार पर हम अन्याय के खिलाफ आंख मूंद कर नही बैठ सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि एक मनोवैज्ञानिक आधार है की हत्या का अपराधी हत्या के बाद फरार हो जाता है ना कि शिकायत दर्ज करा कर उसको सरकारी अस्पताल ले जाता है किंतु उक्त तथ्यों पर न ही निचली अदालत औऱ न ही उच्च न्यायालय ने गौर किया बल्कि पुलिस की कहानी को सही मानते हुए सजा सुना दी जो न्यायोचित नही है।