जबलपुर/ सजल सिंघई
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज अपने मुनि संघ के साथ अपने चरण जबलपुर की ओर बढ़ा रहे हैं और ऐसी संभावना मानी जा रही है कि आचार्य श्री अपना 54वाँ चातुर्मास जबलपुर में रहकर ही पूर्ण करेंगे इसी क्रम में आज आचार्य श्री की शाम 4:30 बजे दयोदय पहुंचने की संभावना जताई जा रही है।
नेमावर से दयोदय: 4:30 बजे पहुंचने की संभावना:
ज्ञात हो कि आचार्य श्री नेमावर से ससंघ जबलपुर की ओर विहार कर रहे हैं जिन्होंने ने लगभग 400 किलोमीटर पद यात्रा कर संस्कारधानी को ये सौभाग्य दिया है, की संभावित अपना 54वाँ चातुर्मास महाकौशल के जबलपुर में कर यहां के लोगों को अपना सानिध्य और आशीष प्रदान करेंगे, इसी क्रम में आचार्य श्री मुनिसंघ के साथ अपने चरण जबलपुर की ओर बढ़ा रहे हैं, बीते रोज आ आचार्य श्री ने रात्रि विश्राम बिछुआ गांव में धनीराम पटैल के यहाँ रुक कर इस ग्राम को धन्य किया, चूंकि बिछुआ ग्राम से दयोदय की दूरी मात्र 14 किलोमीटर है जो संभावित आज पूर्ण कर आचार्य श्री अपने पदार्पण दयोदय की भूमि पर कर जबलपुर को ये सौभाग्य प्रदान करेंगे।
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज:
आचार्य श्री का अवतरण 10 अक्टूबर 1946 को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। उनके पिता श्री मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता श्रीमंती थी जो बाद में आर्यिका समयमति बनी।
आचार्य श्री विद्यासागर जी को 30 जून 1968 में अजमेर में 22 वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी जो आचार्य शांतिसागर के वंश के थे। आचार्य विद्यासागर जी को 22 नवम्बर 1972 में ज्ञानसागर जी द्वारा आचार्य पद दिया गया था। केवल विद्यासागर जी के बड़े भाई ग्रहस्थ है। उनके अलावा सभी घर के लोग संन्यास ले चुके है।उनके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर जी से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर जी और मुनि समयसागर जी कहलाये।
आचार्य विद्यासागर जी संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएँ की हैं। विभिन्न शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है। उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है। विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।आचार्य विद्यासागर जी कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं।
आचार्य विद्यासागर जी के शिष्य मुनि क्षमासागर जी ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है।मुनि प्रणम्यसागर जी ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है।