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May 14, 2024
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जानिए किस-किस नाम से मनाते हैं यह त्यौहार: क्या है महत्व

मकर संक्रांति का ऐतिहासिक महत्व त्यौहार के देश का एक और त्यौहार है मकर संक्रांति. इस एक त्यौहार को देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नाम से बनाया जाता है. कहीं इसे मकर संक्रांति कहते हैं तो कहीं पोंगल लेकिन तमाम मान्यताओं के बाद इस त्यौहार को मनाने के पीछे का तर्क एक ही रहता है और वह है सूर्य की उपासना और दान. मकर संक्रांति है तो चलिए जानते हैं

इस पर्व से जुड़ी कुछ विशेष बातें.
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर- संक्रांति कहलाता है. संक्रांति के लगते ही सूर्य उत्तरायण हो जाता है. मान्यता है कि मकर- संक्रांति से सूर्य के उत्तरायण होने पर देवताओं का सूर्योदय होता है और दैत्यों का सूर्यास्त होने पर उनकी रात्रि प्रारंभ हो जाती है. उत्तरायण में दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं.

महापर्व संक्रांति: पर्व एक रूप अनेक

सूर्य की मकर-संक्रांति को महापर्व का दर्जा दिया गया है. उत्तर प्रदेश में मकर-संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाकर खाने तथा खिचड़ी की सामग्रियों को दान देने की प्रथा होने से यह पर्व खिचड़ी के नाम से प्रसिद्ध हो गया है. बिहार-झारखंड एवं मिथिलांचल में यह धारणा है कि मकर-संक्रांति से सूर्य का स्वरूप तिल-तिल बढ़ता है, अत: वहां इसे तिल संक्रांति कहा जाता है. यहां प्रतीक स्वरूप इस दिन तिल तथा तिल से बने पदार्थो का सेवन किया जाता है.

मकर संक्रांति को विभिन्न जगहों पर अलग-अलग तरीके से मानाया जाता है. हरियाणा व पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है. उतर प्रदेश व बिहार में इसे खिचड़ी कहा जाता है. उतर प्रदेश में इसे दान का पर्व भी कहा जाता है. असम में इस दिन बिहू त्यौहार मनाया जाता है. दक्षिण भारत में पोंगल का पर्व भी सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर होता है. वहां इस दिन तिल, चावल, दाल की खिचड़ी बनाई जाती है. वहां यह पर्व चार दिन तक चलता है. नई फसल के अन्न से बने भोज्य पदार्थ भगवान को अर्पण करके किसान अच्छे कृषि-उत्पादन हेतु अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं. संक्रांति एक विशेष त्यौहार के रूप में देश के विभिन्न अंचलों में विविध प्रकार से मनाई जाती है।

स्नान का मान
कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान करने पर सभी कष्टों का निवारण हो जाता है. इसीलिए इस दिन दान, तप, जप का विशेष महत्व है. ऐसा मान्यता है कि इस दिन को दिया गया दान विशेष फल देने वाला होता है.मकर संक्रांति का ऐतिहासिक महत्माना जाता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते है. चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है. महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था. मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं.

मकर-संक्रांति से प्रकृति भी करवट बदलती है. इस दिन लोग पतंग भी उड़ाते हैं. उन्मुक्त आकाश में उड़ती पतंगें देखकर स्वतंत्रता का अहसास होता है.
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश मकर संक्रान्ति रुप में जाना जाता है। 14 जनवरी के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे। उत्तर भारत में यह पर्व ‘मकर सक्रान्ति के नाम से और गुजरात में ‘उत्तरायण’ नाम से जाना जाता है। मकर संक्रान्ति को पंजाब में लोहडी पर्व, उतराखंड में उतरायणी, गुजरात में उत्तरायण, केरल में पोंगल, गढवाल में खिचडी संक्रान्ति के नाम से मनाया जाता है। 

मकर संक्रान्ति के शुभ समय पर हरिद्वार, काशी आदि तीर्थों पर स्नानादि का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन सूर्य देव की पूजा-उपासना भी की जाती है। शास्त्रीय सिद्धांतानुसार सूर्य पूजा करते समय श्वेतार्क तथा रक्त रंग के पुष्पों का विशेष महत्व है। इस दिन सूर्य की पूजा करने के साथ साथ सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। पंडित चंद्रशेखर शर्मा के अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन दान करने का महत्व अन्य दिनों की तुलना में बढ जाता है। इस दिन व्यक्ति को यथासंभव किसी गरीब को अन्नदान, तिल व गुड का दान करना चाहिए। तिल या फिर तिल से बने लड्डू या फिर तिल के अन्य खाद्ध पदार्थ भी दान करना शुभ रहता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार कोई भी धर्म कार्य तभी फल देता है, जब वह पूर्ण आस्था व विश्वास के साथ किया जाता है। जितना सहजता से दान कर सकते हैं, उतना दान अवश्य करना चाहिए। मकर संक्रान्ति के साथ अनेक पौराणिक तथ्य जुड़े हुए हैं जिसमें से कुछ के अनुसार भगवान आशुतोष ने इस दिन भगवान विष्णु जी को आत्मज्ञान का दान दिया था। इसके अतिरिक्त देवताओं के दिनों की गणना इस दिन से ही प्रारम्भ होती है। सूर्य जब दक्षिणायन में रहते है तो उस अवधि को देवताओं की रात्री व उतरायण के छ: माह को दिन कहा जाता है। महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का दिन ही चुना था। 

कहा जाता है कि आज ही के दिन गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी। इसीलिए आज के दिन गंगा स्नान व तीर्थ स्थलों पर स्नान दान का विशेष महत्व माना गया है। मकर संक्रान्ति के दिन से मौसम में बदलाव आना आरम्भ होता है। यही कारण है कि रातें छोटी व दिन बड़े होने लगते हैं। सूर्य के उतरी गोलार्द्ध की ओर जाने के कारण ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ होता है। सूर्य के प्रकाश में गर्मी और तपन बढ़ने लगती है। इसके फलस्वरुप प्राणियों में चेतना और कार्यशक्ति का विकास होता है। 
मकर-संक्रान्ति के दिन देव भी धरती पर अवतरित होते हैं, आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है, अंधकार का नाश व प्रकाश का आगमन होता है. इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्व है। इस दिन गंगा स्नान व सूर्योपासना पश्चात गुड़, चावल और तिल का दान श्रेष्ठ माना गया है 

मकर संक्रान्ति के दिन खाई जाने वाली वस्तुओं में जी भर कर तिलों का प्रयोग किया जाता है। तिल से बने व्यंजनों की खुशबू मकर संक्रान्ति के दिन हर घर से आती महसूस की जा सकती है। इस दिन तिल का सेवन और साथ ही दान करना शुभ होता है। तिल का उबटन, तिल के तेल का प्रयोग, तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल मिश्रित जल का पान, तिल- हवन, तिल की वस्तुओं का सेवन व दान करना व्यक्ति के पापों में कमी करता है। 

क्‍यों मनाते हैं मकर संक्रांति
यह माना जाता है कि भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्‍वयं उनके घर जाते हैं और शनि मकर राशि के स्‍वामी है। इसलिए इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। पवित्र गंगा नदी का भी इसी दिन धरती पर अवतरण हुआ था, इसलिए भी मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता हैं।इस दिन पूजा-पाठ और दान करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन दान करने से उसका फल कई गुना ज्यादा हो जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार
मकर संक्रांति पर ये उपाय करने से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करना चाहिए।

सूर्योदय से पूर्व स्न्नान

शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करना चाहिए। ऐसा करने से दस हजार गौ दान का फल प्राप्त होता है। वैसे तो प्राणी किसी भी तीर्थ, नदी और समुद्र में स्नान कर दान-पुण्य करके कष्टों से मुक्ति पा सकता है लेकिन प्रयागराज संगम में स्नान का फल मोक्ष देने वाला है। मकर संक्रांति के दिन गंगाजी शिव की जटाओं से निकलकर भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिलीं। इसलिए इस दिन गंगासागर और गंगा स्नान का भी बहुत महत्व है। लेकिन कोरोना के चलते नदियों में स्न्नान करना संभव नहीं हो तो घर पर नहाने के पानी में गंगाजल की कुछ बूंदें डालकर स्नान करना चाहिए।

सूर्यदेव को अर्घ्य

स्नान के पश्चात तांबे के लोटे में शुद्ध जल भरकर उसमें लाल पुष्प, लाल चन्दन, तिल आदि डालकर ‘ॐ घृणि सूर्याय नमः’ मन्त्र का जप करते हुए सूर्य को अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय आपकी दृष्टि गिरते हुए जल में प्रतिबिंबित सूर्य की किरणों पर होनी चाहिए। भविष्य पुराण के अनुसार सूर्यनारायण का पूजन करने वाला व्यक्ति प्रज्ञा, मेधा तथा सभी समृद्धियों से संपन्न होता हुआ चिरंजीवी होता है। यदि कोई व्यक्ति सूर्य की मानसिक आराधना भी करता है तो वह समस्त व्याधियों से रहित होकर सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करता है। व्यक्ति को अपने कल्याण के लिए मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव की पूजा अवश्य करनी चाहिए।  

पुण्य लाभ के लिए दान करें

पदमपुराण के अनुसार ”उत्तरायण या दक्षिणायण आरम्भ होने के दिन जो पुण्य कर्म किया जाता है वह अक्षय होता है। इस समय किया हुआ तर्पण दान और देव पूजन अक्षय होता है। इस दिन ऊनी कपडे, कम्बल , तिल और गुड़ से बने व्यंजन व खिचड़ी दान करने का से सूर्य नारायण एवं शनि की कृपा प्राप्त होती है। इस दिन चौदह चीजों का दान करने का भी धार्मिक महत्व है। यदि संभव हो सके तो किसी मंदिर या गरीब लोगों में चौदह चीजों का दान अवश्य करें।

तिल-गुड़ का करें सेवन

पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं और मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं, जो सूर्य देव के पुत्र होते हुए भी अपने पिता सूर्य से बैर रखते हैं। अतः शनिदेव के घर में सूर्य की उपस्थिति के दौरान शनि उन्हें कष्ट न दें, इसलिए तिल का दान और सेवन मकर संक्रांति में किया जाता है। इसीलिए किसी न किसी न किसी रूप मकर संक्रांति के दिन तिल व गुड़ से बने खाद्य पदार्थ का सेवन करें, ऐसा करने से भगवान सूर्यदेव एवं शनि की कृपा बनी रहेगी।

 
मकर संक्रांति का 12 राशियों पर शुभ-अशुभ प्रभाव

मकर संक्रांति का पर्व ज्योतिष की दृष्टि से भी विशेष फलकारी माना जाता है। सूर्य सभी ग्रहों में प्रमुख हैं। उनके राशि  परिवर्तन का समस्त 12 राशियों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। आइए जानें पंडित चंद्रशेखर शर्मा से आपकी राशि के लिए क्या लाई है संक्रांति : 

मेष – संक्रांति शुभता का वरदान लाई है। कार्य क्षेत्र में विशेष प्रगतिदायक अवसर मिलेंगे। 

वृष -यह संक्रांति शुभ है। धार्मिक क्रियाकलाप आपको भाग्यवान बनाएंगे।

मिथुन – स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल है यह संक्रांति। बिगड़ सकती है सेहत। ध्यान रखें।  

कर्क -इस संक्रांति का संकेत है कि पार्टनरशिप में या पार्टनर के द्वारा कार्य-योजना बनेगी जो सफल हो सकती है।  

सिंह – संक्रांति आपको सचेत कर रही है सावधानी रखें। प्रतिकूल समय है। अनबन से बचें । 

कन्या -यह संक्रांति अनुकूल है। विद्यार्थियों के लिए अच्छा समय है। रोमांस के लिए शुभ है।   

तुला – इस संक्रांति का संदेश है कि मित्रों से चिंता बनी रहेगी। शुभ संदेश मिलेंगे।

वृश्चिक -अत्यंत शुभ और मंगलमयी है संक्रांति। सूर्य का परिवर्तन यश, कीर्ति व पराक्रम बढ़ाएगा। 

धनु – आपके लिए इस संक्रांति का शुभ संदेश है कि धन में वृद्धि होगी। भविष्य की नई योजनाएं बनेगी। 

 मकर -यह संक्रांति कह रही है कि प्रसिद्धि प्राप्त करने का समय है। आप अपने कार्यो को पूरा कर पाएंगे।

कुंभ – संक्रांति की चेतावनी है कि अनावश्यक ख़र्च से बचें। फिर भी समय अनुकूल है आपके लिए। 

मीन -संक्रांति का शुभ संदेश है कि समय आपके साथ है। हर कार्य में सफलता मिलेगी। 

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