विदेशी सैलानी व श्रद्धालु सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती दरगाह शरीफ अजमेर में करते फरियाद: 810 साल पुरानी रस्म अदायगी सोने चांदी से बनी चादरों से भर गया तोशा खाना
अदब की रस्म अकीदत का नजराना दरगाह बनी शरीफ अजमेर
पंकज पाराशर / छतरपुर
अजमेर में सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का 810वां उर्स मनाया जा रहा है। इस दौरान अकीदतमंद चादरें चढ़ा रहे हैं। चादर चढ़ने की ये रस्म पहले उर्स के दौरान मजार को ढकने के लिए शुरू की गई थी। ये रस्म अब अकीदत का नजारा बन चुकी है। यहां देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी चादरें आती हैं। अकीदत की यह परंपरा भी 810 साल पुरानी है।
आलम ये है कि उर्स के दौरान यहां रोज करीब 2 हजार चादरें चढ़ती हैं। इस हिसाब से उर्स के 15 दिन में(उर्स का झंडा चढ़ने से लेकर 9 रजब यानी बड़े कुल की रस्म तक) करीब 30 हजार चादरें चढ़ जाती हैं। यहां 50 रुपए से लेकर 50 हजार रुपए या इससे भी महंगी चादरें चढ़ाई जाती हैं। आजादी से पूर्व की कई चादरें दरगाह के तोशा खाना में महफूज हैं। इनमें कई चादरें सोने-चांदी के तारों से बनी हैं, वे सुरक्षित रखी हैं। अब तोशा खाना भर गया है। तोशा खाना एक कमरा है, जहां चादरों को सुरक्षित रखा जाता है।
खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सैयद वाहिद हुसैन अंगाराशाह की मानें तो मजार शरीफ पर काम आने वाली पूरी चादर 42 गज की होती है। ऐसे में चढ़ने वाली चादर कम ही काम आती है, क्योंकि ज्यादातर चादर छोटी होती है। गरीब नवाज की मजार पर चढ़ी कई चादरें देश भर की दूसरी मजारों पर भेजी जाती हैं। इन चादरों को चढ़ाना फख्र की बात होती है।
अदब की रस्म अकीदत का नजराना बन गई
सैयद वाहिद हुसैन अंगाराशाह ने बताया कि पहले मजार खुले में होती थी और ऐसे में गंदगी न आए और खुला न रहे, इसके लिए अदब के साथ यह रस्म शुरू हुई थी। हालांकि अब मजार कई जगहों पर बंद हो गई है, लेकिन अदब के लिए शुरू की गई ये रस्म अब अकीदत का नजराना बन गई है। उर्स के दौरान दरगाह में खासी भीड़ है और चादर चढ़ाने के लिए अकीदतमंद दरगाह में उमड़ रहे हैं।
15 हजार लोगों को रोजगार
इन चादरों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 15 हजार लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी हैं। चादर पाकिस्तान, बांग्लादेश सहित अन्य देशों से भी आती हैं। अंगाराशाह के मुताबिक देश में सबसे ज्यादा चादर हैदराबाद में बनती हैं। दरगाह क्षेत्र में करीब सौ दुकानें हैं। देशभर में चादर का कारोबार भी करोड़ों में है।
दरगाह में उर्स को लेकर जायरीन की भीड़ है। यहां हर तरफ जायरीन की लंबी-लंबी कतारें देखी जा सकती हैं।
नामचीन हस्तियां व देश की पेश हो चुकी है चादर
पीएम नरेंद्र मोदी की ओर से 8 साल में 8 चादरें पेश हो चुकी हैं, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में भी चादरें भेजी जाती रही हैं। पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जियाउल हक, जनरल परवेश मुशर्रफ, आसिफ अली जरदारी, बेनजीर भुट्टो भी यहां चादर पेश कर चुकी हैं। बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति एचएम इरशाद, मौजूदा प्रधानमंत्री शेख हसीना, पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की चादर भी चढ़ाई जा चुकी हैं। पिछले उर्स में पहली बार अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी की ओर से उर्स के मौके पर चादर पेश की गई थी। हर साल करीब 500 जायरीन पाकिस्तान से आते हैं। पिछले दो साल से कोरोना के कारण अनुमति नहीं दी गई।