सो गया दरखत अपनी भुजाओं में ,
खेलकर बड़ा हुआ इन्हीं हवाओं में ,
तौल न सके तराजू से वाट उसे ,
उड़ गया कैसे कब इन्हीं हवाओं में.
कितने लम्बे हाथ थे जनाव उसके ,
कैसे द्रुतगामी घोड़े थे मन के उसके,
तोड़ दीं जंजीर, दीवार पत्थर की,
छोड़ मोह माया उड़ा हवाओं में.
फूलती टहनी खुशबू संवार दीं,
कलियाँ रंग भर भर उभार दीं,
छाया बनेंगी किसी थकी राह में,
रहेंगे हमसफ़र तुम स्वकलाओं में.
भावपूर्ण श्रद्धांजलि
याद में आपकी आंखें भर आती हैं।
सब कुछ होते हुए भी कमी आपकी नजर आती है।।
आपकी ममतामयी स्मृतियां स्नेह एवं आशीर्वाद स्वरूप सदैव हमारे साथ रहेंगीं……….
श्रध्दावनत: शोकाकुल परिवारजन:
देवेंद्र पाण्डे (दामाद) रामकृष्ण रेखा पाठक, रमेश पाठक, उर्मिला पाण्डे (पुत्री) (पुत्र), मोहित, मेघा, शुभम, काजल
एवं समस्त पाठक परिवार