सजल सिंघई/ब्यूरो
पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक मैसेज पर दिगम्बर जैन महासभ ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है ज्ञात हो कि गत माह सोशल मीडिया के सभी प्लेटफॉर्म चाहे फेसबुक हो व्हाट्सएप, ट्विटर हो या इंस्टाग्राम सभी जगह एक ही मेसेज वायरल हो रहा है कि सम्मेदशिखर जी समर्थन में भारत बंद का आयोजन।
गैरतलब है कि सम्मेदशिखर जी जैन समुदाय का सर्वोच्च तीर्थ माना जाता है श्री शिखरजी या पारसनाथ पर्वत भारत के झारखंड राज्य के गिरिडीह ज़िले में छोटा नागपुर पठार पर स्थित एक पहाड़ी है जो विश्व का सबसे महत्वपूर्ण जैन तीर्थ स्थल भी है। ‘श्री सम्मेद शिखरजी’ के रूप में चर्चित इस पुण्य क्षेत्र में जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने मोक्ष की प्राप्ति की, यहीं 23 वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था, माना जाता है कि 24 में से 20 जैन तीर्थंकरों ने यहां पर मोक्ष प्राप्त किया, 1,350 मीटर (4,430 फ़ुट) ऊँचा यह पर्वत झारखंड का सबसे ऊंचा स्थान भी है।
श्री शिखर जी पर्वत की धार्मिक मान्यता:
शिखरजी जैन धर्म के अनुयायिओं के लिए एक महतवपूर्ण तीर्थ स्थल है। पारसनाथ पर्वत विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ हर साल लाखों जैन धर्मावलंबियों आते है, साथ-साथ अन्य पर्यटक भी पारसनाथ पर्वत की वंदना करना जरूरी समझते हैं। गिरिडीह स्टेशन से पहाड़ की तलहटी मधुवन तक क्रमशः 14 और 18 मील है। पहाड़ की चढ़ाई उतराई तथा यात्रा करीब 18 मील की है। सम्मेद शिखर जैन धर्म को मानने वालों का एक प्रमुख तीर्थ स्थान है। यह जैन तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। जैन धर्मशास्त्रों के अनुसार जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों और अनेक संतों व मुनियों ने यहाँ मोक्ष प्राप्त किया था। इसलिए यह ‘सिद्धक्षेत्र’ कहलाता है और जैन धर्म में इसे तीर्थराज अर्थात् ‘तीर्थों का राजा’ कहा जाता है। यह तीर्थ भारत के झारखंड प्रदेश के गिरिडीह जिले में मधुबन क्षेत्र में स्थित है। यह जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ है। इसे ‘पारसनाथ पर्वत’ के नाम से भी जाना जाता है। एवं अभी इस तीर्थराज की स्थिति खराब है क्युकी यहां पर लोगो ने सब जगह कचरा कर दिया है यह पर आकर लोग अभ्यक्ष खाते है। जैसे – शराब,गुटखा,बीड़ी, सिगरेट आदि। का सेवन कर इस पावन तीर्थ को खराब कर रहे है। एवं सभी जैनियों को मिलकर इस तीर्थ की रक्षा करनी होगी। पारसनाथ सम्वेद शिखर (बिहार)मे ज्ञान की प्राप्ति हुई इनकी शिक्षा में चार व्रतों का उल्लेख किया गया है ये व्रत हैं – सत्य – सदा सत्य बोलना चाहिए अहिंसा – जीवों की हत्या नहीं करना चाहिए अस्तेय – बिना पूछे किसी की कोई वस्तु नहीं छूना चाहिए अपरिग्रह – आवयश्कता से अधिक धन का संचय नहीं करना चाहिए।
श्री शिखर जी महत्व:
जैन धर्म शास्त्रों में लिखा है कि अपने जीवन में सम्मेद शिखर तीर्थ की एक बार भावपूर्ण यात्रा करने पर मृत्यु के बाद व्यक्ति को पशु योनि और नरक प्राप्त नहीं होता। यह भी लिखा गया है कि जो व्यक्ति सम्मेद शिखर आकर पूरे मन, भाव और निष्ठा से भक्ति करता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है और इस संसार के सभी जन्म-कर्म के बंधनों से अगले 49 जन्मों तक मुक्त वह रहता है। यह सब तभी संभव होता है, जब यहाँ पर सभी भक्त तीर्थंकरों को स्मरण कर उनके द्वारा दिए गए उपदेशों, शिक्षाओं और सिद्धांतों का शुद्ध आचरण के साथ पालन करें। इस प्रकार यह क्षेत्र बहुत पवित्र माना जाता है। इस क्षेत्र की पवित्रता और सात्विकता के प्रभाव से ही यहाँ पर पाए जाने वाले शेर, बाघ आदि जंगली पशुओं का स्वाभाविक हिंसक व्यवहार नहीं देखा जाता। इस कारण तीर्थयात्री भी बिना भय के यात्रा करते हैं। संभवत: इसी प्रभाव के कारण प्राचीन समय से कई राजाओं, आचार्यों, भट्टारक, श्रावकों ने आत्म-कल्याण और मोक्ष प्राप्ति की भावना से तीर्थयात्रा के लिए विशाल समूहों के साथ यहाँ आकर तीर्थंकरों की उपासना, ध्यान और कठोर तप किया।
श्री शिखर जी मामले में दिगम्बर ग्लोबल महासभ ने अपना बयान जारी किया है एवं समस्त जैन समुदाय से आग्रह किया है कि सोशल मीडिया पर प्रसारित भ्रामक प्रचार पर ध्यान न दें।