एडिटर रिपोर्ट (सौरभ शर्मा)- आज के राजनैतिक युग मे आंदोलन आम बात हो गई है केवल पब्लिसिटी और राजनैतिक बर्चस्व बनाने के लिए लोग आंदोलन का सहारा लेने लगे हैं। ऐसा ही एक मामला आया है छतरपुर जिले की बिजावर तहसील से जहां आज कल एक नया ट्रेंड चल रहा है बकस्वाहा जंगल बचाव अभियान। जिसमे लोग बढ़ चढ़ कर सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं जिसमे आम नागरिक से लेकर विधायक जी तक बकस्वाहा जंगल काटने का विरोध कर रहे हैं। क्योंकि बकस्वाहा जंगल मे उत्खनन के नाम पर लाखों पेड़ों की आहुति दी जाएगी।
एक सवाल – इन सब गतिविधियों के मध्य एक तस्बीर सामने आई है जो है बिजावर मुख्यालय से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर जहां लगभग रोज सागौन के पेड़ काटे जाते है और आम नागरिक से वनमंडल कुम्भकर्णी नींद में लिप्त है। चूंकि यदि एक पेड़ काटने का विरोध किया जाए तो न कोई पब्लिसिटी होगी न राजनीति , लेकिन अगर बकस्वाहा का विरोध किया जाए तो दोनों उद्देश्य एक साथ पूर्ण हो जाएंगे।
बूंद बूंद से घड़ा खाली भी होता है – एक बहुत प्राचीन कहावत है कि बून्द बून्द से घड़ा भर जाता है तो यही सिद्धांत इसके विपरीत भी काम करता है की बूंद बूंद से घड़ा खाली भी हो जाता है मतलब साफ की यदि रोज रोज एक एक दो दो पेड़ काटे जायँ तो एक दिन ये वन संपदा खत्म हो जाएगी। ज्ञात हो कि बिजावर नगर विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य स्थित है यहाँ चारों ओर प्रकृति अपनी अनुपम छटा बिखेरती है क्योंकि यहां चारों तरफ सागौन के घने जंगल हैं जिनकी अब रोज बलि दी जाती है किंतु सोचने वाली बात यह है की मुख्यालय से मात्र कुछ ही दूरी पर सागौन के पेड़ काटे जाते है और न वन विभाग, न आम आदमी, न राजनेताओ को इसकी झनक तक नही पड़ती या सभी अपनी आखों में नींबू का रस निचोड़ कर आराम करते रहते हैं। लेकिन किसी आंदोलन का झंडा जरूर उठाएंगे। इसका तो साफ मतलब निकलता है कि खुद के घर अंधेरा और दूसरों का चिराग रोशन करने चले।
सागौन की चोरी – प्राप्त सूत्रों के अनुसार एक समय बिजावर के जंगल इतने घने हुआ करते थे कि जमीन तक सूरज की रोशनी बमुश्किल पहुंच पाती थी लेकिन आये दिन सागौन के पेड़ों की चोरी होने लगी और आज नाम मात्र के सागौन के पेड़ रह गए वो भी आये दिन चोरी होते रहते है किन्तु वन अमला ये चोरी रोकने में बोना साबित होता है। यही नही कई जगहों पर वन भूमि पर दबंगों ने कब्जा कर रखा है जिसको वन विभाग आज तक छुड़ाने में असफल रही।