एडिटर रिपोर्ट (सौरभ शर्मा)- मध्य प्रदेश में विंध्य पर्वत श्रंखला के मध्य बसा बक्सवाहा नगर जिसके आसपास लगभग 50 ग्राम बसे हुए हैं जिनकी जीविका का एक साधन वन भी है प्राप्त सूत्रों के अनुसार जल्द ही बक्सवाहा के जंगलों का सफाया होने वाला है और एक बार फिर प्राकृतिकता के ऊपर क्रतिमता की आरी चलेगी जिसके चलते तकरीबन ढाई लाख पेड़ो कि आहुति दी जाएगी जो अपने आप में एक मिसाल होगी जो भविष्य में ये दर्शाएगी की कृतिमता में पर्यावरण का कोई महत्व नहीं है।

कितना होगा विनाश -इस प्रोजेक्ट में तकरीबन 382.131 हेक्टेयर मतलब तकरीबन 1000 ऐड़क के जंगल को काटा जाएगा, जिसमें अन्तर्गत लगभग ढाई से तीन लाख पेड़ आयेंगे। जिसका प्रभाव तकरीबन पचास गांव के लोगो को झेलना पड़ेगा। जो उस जंगल पर ही निर्भर हैं। जिसके अंतर्गत बरसात के मौसम के कई जल प्रपात को भी नष्ट किया जाएगा।

प्रकृति बनाम व्यापार –आज कोरोना के परिदृश्य में जहां हम ऑक्सीजन के महत्व को भली भांति देख चुके हैं। उसके बाद इतना बड़ा विनाश हमें केवल विनाश कि ओर ही ले जाएगा जिसका खामियाजा आने वाले समय में हमारी आगे वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा। विंध्य पर्वत श्रंखला के वो मानव जीवन का आधार केवल वनोपज सामग्री से नहीं अपितु बर्षा वन, ऑक्सीजन के मुख्य श्रोत के रूप में भी हैं। जिसके कटने से बर्षा, हवा, ऑक्सीजन तथा वनोपज का भारी नुकसान होगा जो एक अभूतपूर्व क्षति होगी जिसकी भरपाई कृतिम वस्तुएं नहीं कर सकती। जब आज हमारी फैक्ट्रियां मात्र चंद लाख लोगों को ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं कर पाई तो कई करोड़ों को कैसे करेंगी।
बक्सवाहा बचाव आंदोलन -बक्सवाहा बचाव आंदोलन की छोटी सी चिंगारी आज आज विशाल अग्नि की ज्वाला बन चुकी है जो धीरे धीरे बक्सवाहा से शुरू हो कर सम्पूर्ण बुंदेलखंड के साथ पूरे मध्य प्रदेश में सुलग गई है इस आंदोलन में ना कोई हिन्दू है ना मुस्लिम ना दलित है ना सवर्ण ना गरीब है ना आमिर अपितु सब इस धरती की संताने है जो एक साथ खड़े हो कर इस आंदोलन को आगे बढ़ा रही है। ये आंदोलन मात्र मानव जाति का आंदोलन बन गया है।जो आज प्रकृति के संरक्षण के लिए जान कि बाजी लगाने तक को तैयार है। ये आंदोलन छतरपुर, सागर, दमोह ,से लेकर आज जबलपुर तक अपने पैर पसार चुका है।