ब्यूरो डेस्क/सौरभ शर्मा
.रात्रि में 2:35 पर किया देह त्याग
.जैन समुदाय में फैली शोक की लहर
भारत बर्ष की धरोहर जैन संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने आज रात्रि तकरीबन 2:35 पर अपना देह त्याग कर दिया है, महाराज जी संत शिरोमणि पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे, अभी वर्तमान में आचार्य श्री छत्तीसगढ़ से डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरि तीर्थ में विराजमान थे जहां उन्होंने तीन दिवसीय उपवास के बाद अपनी देह त्याग की, आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के अनुयायी केवल जैन समुदाय ही नही अपितु भारत बर्ष के समस्त समुदाय थे, आप को एक युग परिवर्तक संत माना जाता है जिन्होंने भारत देश मे कई विशाल जैन तीर्थो का निर्माण कराया साथ दिगंबर संत आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी समाज सुधारक युग पुरुष संत थे।
एक नजर आपके जीवन पर :
उनका जन्म 10 अक्टूबर 1946 को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था, उनके पिता श्री मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने, उनकी माता श्रीमंती थी जो बाद में आर्यिका समयमति बनी।
विद्यासागर महाराज जी को 30 जून 1968 में अजमेर में 22 वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी जो आचार्य शांतिसागर के वंश के थे। आचार्य श्री विद्यासागर जी को नवम्बर 1972 में ज्ञानसागर जी द्वारा आचार्य पद दिया गया था, उनके भाई सभी घर के लोग संन्यास ले चुके हैं। उनके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर और मुनि समयसागर कहलाये।उनके बङे भाई भी उनसे दीक्षा लेकर मुनि उत्कृष्ट सागर जी महाराज कहलाए।
आचार्य विद्यासागर जी महाराज संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएँ की हैं, विभिन्न शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है, उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं, उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है। विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।आचार्य विद्यासागर जी कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं।
आचार्य विद्यासागर महाराज जी के शिष्य मुनि क्षमासागर ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है, मुनि प्रणम्यसागर ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है।