27.7 C
Madhya Pradesh
May 2, 2024
Bundeli Khabar
Home » अति विशिष्ट महाशिवरात्रि रुद्राभिषेक व पूजन महाशिवरात्री साधना
धर्म

अति विशिष्ट महाशिवरात्रि रुद्राभिषेक व पूजन महाशिवरात्री साधना

*महाशिवरात्री चिंतन*

इस वर्ष की महाशिवरात्री शनिवार 18 फरवरी 2023 के दिन है। शनिवार के दिन महाशिवरात्री आने से उसका आध्यात्मिक महत्त्व कई गुना और बढ जाता है .इस पर्व को पुरे भारत वर्ष में बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथे मनाया जाता है। मगर बहुत कम लोग इसके पीछे के आध्यात्मिक गूढ़ रहस्य को समझ पाते है।

आज हम आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण इस पर्व के आध्यात्मिक महत्त्व को तथा उसके पीछे के गूढ़ रहस्य और चिंतन को समझने की कोशिश करेंगे।

संपूर्ण वर्ष मे आध्यात्मिक साधना की दृष्टीकोण से तीन दिन ( रात्री ) सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और सिद्धिप्रद होती है काल रात्री , महारात्री , मोहरात्री ..उसमे महारात्री मतलब महाशिवरात्री होती है ..इसका महत्व समझ ले सही मायनो मे और फिर इस पर्व काल का सही तरिके से साधना करके इस्तेमाल कर आध्यात्मिक प्रगती की ओर कदम बढाये .. बिना ग्यान के कर्म (साधना ) अंधा है और बिना कर्म (साधना ) के ग्यान लंगडा है ..

सर्वप्रथम ” शिवरात्री ” शब्द का अर्थ समझ ले। सम्पूर्ण वर्ष में हर महीने के कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी (14 वी ) तिथि की रात्री को शिवरात्री कहा जाता है और जब यह तिथि महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के पंचांग अनुसार माघ महीने की और उत्तर भारत के पंचांग अनुसार फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात्री में हो तो यह ” महा शिवरात्री ” कहलाती है।

चन्द्रमा की हर कला के साथ एक विशिष्ट आध्यात्मिक देवता का तत्व सम्बंधित होता है जो उस तिथि पर चैतन्य हो जाता है , ब्रम्हांड में और मनुष्य शरीर में भी ” अणु पिण्डे ब्रम्हाण्डे ” .…

चतुर्दशी तिथि शिव और शक्ति का मिलाप है ,संगम है। शक्ति का अर्थ है कुण्डलिनी और वह मूलाधार में सुप्त है ,सोयी हुई है। उसे जागृत करना है और षट चक्रों के भेदन से सुषुम्ना मार्ग से सहस्त्रार में मतलब शिव तत्व में विलीन करना है। फिर शिव के साथ चैतन्य के साथ शक्ति का मिलाप होकर वह चैतन्य युक्त शक्ति फिर मूलाधार में आती है। हर महीने में शिवरात्री तिथि की महानिशा में कुछ समय के लिए सुषुम्ना खुल जाती है और फिर इसी माध्यम से कुण्डलिनी जागृत हो सहस्त्रार में पहुँच सकती है।वैसे तो हर महीने की शिवरात्री होती है फिर महाशिवरात्री का क्या महत्त्व है बिलकुल है। सूर्य आत्मा का प्रतिक है ,चन्द्र मन का प्रतिक है। जब ये दोनों राशि चक्र के , काल चक्र के उस बिंदु पर एकत्र आते है जो की वास्तविक ज्ञान का बिंदु है ,अंश है जिसे काल चक्र में राशि चक्र में कुम्भ राशि कहा जाता है तो वह आत्मा और मन परमात्मा में विलीन हो जाता है। महाशिवरात्री पर आत्मा का कारक सूर्य ज्ञान की राशी कुंभ मे और मन का कारक चंद्र भौतिक तत्व की राशी मकर मे होता है .. और वह ज्ञान की राशी कुंभ की तरफ अग्रेसर है .. यानि परम पवित्र निर्मल आत्मा के पास चंचल विकारी मन जो ज्ञान की प्यास मे जा रहा है ..

कुम्भ राशि शनि की है।शनि है तप ,वैराग्य ,त्याग ,विरक्ति ,प्रपंच से दूर जाना ,माया के जंजाल से मुक्ति। तो जब सूर्य रूपी आत्मा और चन्द्र रूपी मन शनि के यानी तप ,विरक्ति ,त्याग के ज्ञान से पूर्ण राशि कुंभ मे एकत्र आते है और वह चतुर्दशी तिथि की रात्री अर्थात महानिशा हो तो वह महाशिवरात्री होती है। वह दिन होता माघ महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी। उस तिथि पर शिव यानी ज्ञान की पूजा यानी साधना कर ज्ञान की और मोक्ष की प्राप्ति संभव है। शिव यानी ज्ञान वह ज्ञान है जो वास्तविक आध्यात्मिक और पार लौकिक ज्ञान है। जो साधक को भाव सागर से पार कराता है।

कुम्भ राशि का तत्व भी शिव के उस श्मशान वासी ,बैरागी तत्व जैसा है जो सांसारिक दुनियासे दूर ,अपने में मस्त ,अलिप्त मनोवृत्ति ,बहुत matured ,दुनिया से हटकर कुछ करने की प्रवृत्ति ,गंभीर … और अहंकार का कारक सूर्य उस बैरागी तत्व की ओर झुकता है अपना अहंकार छोडकर .. आत्मा प्यासी है शिव रुपी ज्ञान की प्राप्ति के लिये और चंचल विकारी मन का कारक चंद्रमा भौतिकता के मकर

जिनका सूर्य कुम्भ राशि में होता है (अर्थात जन्म 14 फरवरी से 14 मार्च के बीच हो ) और  जिनका चन्द्रमा कुम्भ राशि में होता है अर्थात जिनकी जन्म राशि कुम्भ है उनमे या गुण पाये जाते है।

सूर्य के इष्ट और गुरु शिव है ,चन्द्र के गुरु भी शिव है और शनि के भी इष्ट गुरु शिव है और जब सूर्य ,चन्द्र शनि के राशि में एक साथ आये तो शिवत्व का बोध कराते है। शिवत्व की प्राप्ति कराते है। और ऐसे शिव की जो शक्ति के साथ है। बिना शक्ति के शिव “निर्गुण ” है और शक्ति के साथ वे “सगुण ” है।

शनि की राशि में आने से सूर्य रूपी आत्मा और चन्द्र रूपी मन शनि के भाव वैराग्य और त्याग की भावना प्रबल बनाते है। इसीलिए महाशिवरात्री पर उपवास रखकर त्याग और वैराग्य की भावना प्रबल करते है।

कुम्भ राशि निसर्ग कुंडली में 11 वे भाव में जिसे लाभ स्थान कहते है वहा होती है । यह लाभ भौतिक भी हो सकता है और आध्यात्मिक भी हो सकता है। यह तो व्यक्ति व्यक्ति पर निर्भर होता है। यह स्थान आकर्षण का है ,आकर्षण लक्ष्मी का ,आकर्षण उच्च पद पर बैठे व्यक्ति का ,आकर्षण मित्रो का ,आकर्षण देवताओ का। .

यह इच्छा या कर्म का अंतिम भाव है। अंतिम स्थान है कुंडली में। प्रलोभन का अंतिम स्थान है जिस पर विजय पाना उसका सामना करना साधक को बिना सदगुरु के मुश्किल होता है मोक्ष के अंतिम स्थान तक जाने के लिए। इसीलिए शनि की कुम्भ राशि में सूर्य और चन्द्र का मिलाप शिव तत्व की गुरु तत्व की ज्ञान तत्व की साधना करने का महापर्व है।

चतुर्दशी को शिव और शक्ति का संगम है ,ब्रम्ह और माया का संगम है। महा शिवरात्री को इस शिव और शक्ति के संगम को हम लोग लौकिक अर्थ से शिव और शक्ति यानि पार्वती का विवाह कहते है। इनके विवाह से इनके संगम से अर्थात यथार्थ ज्ञान और यथार्थ शक्ति (प्रयत्न) के संगम से बुद्धि के कारक गणेश और पराक्रम ,वीरता के कारक कार्तिकेय का जन्म होता है।जब उचित ज्ञान और उचित प्रयत्न एक साथ आते है तो वह बुद्धि और पराक्रम का निर्माण करते है। यही महाशिवरात्री का सार है।

मूलाधार में सुप्त शक्ति यानी कुण्डलीनी को योग के माध्यम से , साधना के माध्यम से ,उचित आचार विचार आहार विहार के माध्यम से आप को सहस्त्रार में ले जाना है यही महाशिवरात्री का शिव पार्वती का विवाह है।

शिव इस विवाह में नंदी पर बैठ आते है। यह नंदी धर्म का प्रतिक है , योग का प्रतिक है और शरीर में सुषुम्ना का प्रतिक है जिसके माध्यम से उस पर बैठ शिव बरात में आएंगे। उनके साथ बरात में भुत प्रेत है। जब मूलाधार चक्र जागृत होता है तो हमारे अनेकों पूर्व जन्म के भय ,वासना ,काम भाव प्रकट होते है वही इस शिव की बरात के भूत प्रेत है।इनका सामना हमें करना है। अगर सदगुरु के सानिध्य में है तो आप सुरक्षित है वरना यह भय वासना काम आपको पागल कर देंगे । इसीलिए कुण्डलिनी जागरण की साधना बिना गुरु के मार्गदर्शन के नहीं करनी चाहिए।

पुराणो के अनुसार महाशिवरात्रि की महानिशा में ही भगवान शिव अपने शिवलिंग रूप में सगुण रूप में प्रकट हुए थे।इसी दिन उन्होंने सागर मंथन में उत्पन्न हुआ विष प्राशन किया था और वे नीलकंठ कहलाये।इस दिन शिव पूजन करने से सम्पूर्ण वर्ष के शिव पूजन का फल प्राप्त होता है।इस दिन शिवजी को बेल अर्पण किया जाता है। उसके पीछे भी चिंतन है।बेल आयुर्वेद मत से वात विकार में बहुत उपयोगी है और इन्ही दिनों में वात बढ़ता है।

इसीलिए वात को नियंत्रित करने के लिए बेल पत्र का स्पर्श या उसका पान करे ..संशोधन से पता चला है की बेल पत्र सत्व गुण बढ़ाता है। जब हम बेल पत्र का स्पर्श करते है तो वह हमारे रज और तम गुण खिंच लेता है और सत्व गुण बाहर फेकता है जिसे हमारा शरीर ग्रहण करता है और हमारे अंदर सत्व गुणों का विकास होता है।

और हमारा रज तम रूपी विष हम शिव लिंग पर चढ़ाते है। जिसका पान शिव करते है। जब भी कोई निराशा से ग्रस्त ,बुरे विचारोंसे ग्रस्त व्यक्ति , या depression में व्यक्ति बेल पत्र का स्पर्श करता है और शिव लिंग पर मन्त्रों के माध्यम से चढ़ाता है तो यह तो बेल पत्र उसके नकारात्मक पहलू ग्रहण कर उसे सकारात्मक विचार देता है।महाशिवरात्री पर्व पर पारद शिवलिंग पर अष्टोत्तर बिल्वार्चन प्रयोग के 108 श्लोको के माध्यम से 108 बिल्वार्चन प्रयोग करना एक महत्वपूर्ण साधना मानी जाती है

आप यह प्रयोग करें: सदगुरु भी शिष्यों के मन में श्रद्धा और तर्क के मंथन में उत्पन्न विष का प्राशन करते है। सदगुरु शिष्य के कर्मों के विष का प्राशन कर उसे शक्तिपात का अमृत प्रदान करते है। यही महाशिवरात्री के पर्व पर सदगुरु के सानिध्य का महत्त्व है। शिव ही गुरु है और गुरु ही शिव है।

महाशिवरात्री की सूर्यास्त से लेकर चार भाग मे साधना होती है ..
१) एक सूर्यास्त समय पर प्रदोष काल मे
२) सूर्यास्त के बाद दुसरे प्रहर मे
३) मध्यरात्री निशाकाल मे
४) सूर्योदय से पहले साधारणतः 4 बजे की आसपास ..

इसमे मध्यरात्री का निशाकाल और सूर्यास्त का समय बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है .यह मध्यरात्री का निशाकाल हर क्षेत्र स्थान के अनुसार अलग अलग होगा .इस वर्ष यह पर्व काल महाशिवरात्री के दिन देर रात मोटे तौर पर रात 12.15 से 1.15 तक ले ले .. इस का लाभ अवश्य उठाये। कुछ महत्त्वपूर्ण स्थानो का महाशिवरात्रीका मध्यरात्री का पर्वकाल दे रहा हु .. हो सकता है गणित मे दो तीन मिनिट का फर्क इधर उधर हो ..

१) पुणे : – महाशिवरात्री की मध्य रात्री यानी रविवार की देर रात 12.24 से रात 1.12

भोपाल :- रात 12.10 से रात 1.00

उज्जैन :- रात 12.16 से रात 1.06

दिल्ली :- रात 12.10 से रात 1.00

आप अपने क्षेत्र के मध्यरात्री के पर्वकाल को जानकर उस पर्वकाल शिवसाधना अवश्य करे .. इस पर्वकाल मे शिव साधना करने से शिवजी की कृपा सहज संभव है ..

इस महाशिवरात्री पर्व पर शिवत्व की प्राप्त के लिए उचित आध्यात्मिक साधना संपन्न कर मनुष्य जीवन को सार्थक बनाना चाहिए। वरना यह जीवन तो वैसे भी पशुवत ही जिया जाता है। पशु के पास भी रहने के लिए जगह है ,अन्न है ,परिवार है , आपस में स्पर्धा है। बस उसके पास चिंतन नहीं है। इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति आत्मचिंतन करना चाहिए अपने जीवन के आध्यात्मिक पक्ष के बारे में। शिव जी हमारे अंदर के पशु भाव को नष्ट करते है इसीलिए वे पाशुपत कहलाते है

शिवरात्री पर मात्र उपवास रखकर ,शिव मंदिर में दर्शन कर महाशिवरात्री यथार्थ रूप से संपन्न नहीं होंगी। आपके पास आज का सुख है ,आप का आज का समय सुरक्षित है इसका मतलब यह नहीं की कल भी ऐसा ही होगा। ज्यादातर लोग संकट में आने की बाद ही आध्यात्मिक क्षेत्र का सहारा लेते है। आप भी कभी संकट में आ सकते है। जन्म के बाद मृत्यु निश्चित है ,सुख के बाद दुःख है यही जीवन का सार है। प्रतिकूलता किसी ना किसी माध्यम से चाहे वो आर्थिक नुकसानी ,पारिवारिक कलह ,रोग ,संतान से त्रास , शत्रु से पीड़ा , अपमान ,पद से दूर होना आदि मार्ग से आ सकती है। आज नहीं तो कल आप मृत्यु से ,काल के पंजे से बच नहीं सकते ‘फिर आपका पैसा ,आपका हुद्दा ,आपका परिवार आपके साथ नहीं जाएगा। जाएंगे आपके आध्यात्मिक कर्म ,आपका पुण्य और आपके सदगुरु की कृपा। इसीलिए इस महाशिवरात्री पर्व पर बैठकर उचित विशेष आध्यात्मिक साधना संपन्न करे या अगर यह संभव नहीं है तो एकांत में बैठकर शिव पूजन या शिव की सरल सहज साधना संपन्न करे। आत्मचिंतन करे। जीवन के प्रति गंभीर हो जाए। यह मनुष्य जीवन बार बार नहीं मिलेगा। इसे व्यर्थ के क्रिया कलाप में ना गवाए। जीव और शिव का मिलाप ही महाशिवरात्री का प्रयोजन है। जीव को शिव के पास जाना पडेगा, शिव खुद जीव के पास नहीं आएंगे। महाशिवरात्री पर्व पर सदगुरु के चरणों में यही निवेदन है की सभी लोग जागृत हो जाए ,बेहोशी से जागे।
माया के आवरण से हटकर जीवन की तरफ देखे। योग ,आध्यत्मिक साधना और गुरुमार्ग को आध्यात्मिक मार्ग को अपनाकर जीवन को स्वस्थ ,सुन्दर और सुखी समृद्ध संपन्न बनाये। समृद्ध दोनों पक्ष से भौतिक और आध्यात्मिक महाशिवरात्री पर्व पर सबसे महत्त्वपूर्ण शिव पूजन संपन्न करना चाहिए।

*महाशिवरात्री विशेष शिव पूजन*

सर्व प्रथम सदगुरु का ध्यान करे
गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर :
गुरु: साक्षात परब्रम्ह तस्मै श्री गुरवे नमः
ॐ गुं गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
ॐ श्री साम्ब सदाशिवाय नमः

अब 4 बार आचमन करे।
ॐ आत्म तत्व शोधयामि स्वाहा
ॐ विद्या तत्व शोधयामि स्वाहा
ॐ शिव तत्व शोधयामि स्वाहा
ॐ सर्व तत्व शोधयामि स्वाहा

फिर गुरु , परम गुरु और परमेष्ठी गुरु का पूजन करे .. पूजन स्थल पर पुष्प अक्षत अर्पण करे।

ॐ गुरुभ्यो नमः
ॐ परम गुरुभ्यो नमः
ॐ परमेष्ठी गुरुभ्यो नमः

अब आसन पर पुष्प अक्षत अर्पण करे

ॐ पृथ्वी देव्यै नमः

चारो तरफ दिशा बंधन हेतु अक्षत फेके
और अपनी शिखा पर दाहिना हाथ रखे

फिर दीपक को प्रणाम करे
दीप देवताभ्यो नमः

कलश में जल डाले और उसमे चन्दन या सुगन्धित द्रव्य डाले
कलश देवताभ्यो नमः
अब अपने आप को तिलक करे

और दाहिने हाथ में जल लेकर अपने नाम और गोत्र का उच्चारण कर संकल्प करे की आज महाशिवरात्री के दिन
मैं भगवान शिव का उनके परिवार के साथ कृपा प्राप्त करने हेतु यथाशक्ति
साधना संपन्न कर रहा हूँ और गुरु कृपा से साधना सफल हो जाए।
गुरु के स्मरण पूजन से साधना सम्बंधित दोष दूर हो जाते है

फिर सदगुरु का पंचोपचार पूजन करे
(गंध अक्षत पुष्प धुप दीप नैवेद्य )

ॐ गुं गुरुभ्यो नमः पंचोपचार पूजनम समर्पयामि

फिर गणेश जी का स्मरण करे

वक्रतुंड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा

ॐ श्री गणेशाय नमः पंचोपचार पूजनम समर्पयामि

अब भैरव जी के लिये बेल पत्र या पुष्प अक्षत अर्पण करे

तीक्ष्ण द्रंष्ट महाकाय कल्पांत दहनोपम
भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञाम दातुर्महसि

अब हाथ में बेल पत्र लेकर शिव जी का ध्यान करे

ॐ ध्यायेत् नित्यं महेशं रजत गिरी निभम् चारु चंद्रावतंसम्
रत्नाकल्पोज्ज्वलांगम परशुमृगवरा भीति हस्तं प्रसन्नम
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतम मरगणै व्याघ्रकृत्तिम् वसानं
विश्वाद्यं विश्वबीजम निखिलभयहरम पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम

ॐ श्री साम्ब सदाशिवाय नमः आवाहयामि
सपरिवार स्थापयामी नमः

स्वामिन सर्वजगन्नाथ यावत पूजावसानकम !
तावत्वं प्रति भावेन लिंगेsस्मिन सन्निधौ भव !!

श्री साम्ब सदाशिवाय नमः षोडशोपचार पूजनम समर्पयामि

*शिव षोडशोपचार पूजन*

ॐ भवाय नम: आवाहनं समर्पयामि
(बेल पत्र समर्पित करे )
ॐ शर्वाय नम: आसनं समर्पयामि
( बेल पत्र समर्पित करे )
ॐ उग्राय नम: पाद्यं समर्पयामि
( दो आचमनी जल अर्पित करे )
ॐ पशुपतये नम: अर्घ्यम समर्पयामि
( एक आचमनी जल मे चंदन मिलाकर अर्पण करे )

ॐ ज्येष्ठाय नम: स्नानं समर्पयामि
( स्नान हेतु आचमनी से जल अर्पण करे )
यहाँ पर रुद्राभिषेक या अन्य किसी स्तोत्र से अभिषेक कर सकते है

ॐ श्रेष्ठाय नम: आचमनीयं समर्पयामि
( एक आचमनी जल अर्पण करे )

ॐ रुद्राय नम: यज्ञोपवीतम समर्पयामि
( यज्ञोपवीत न हो तो अक्षत अर्पण करे )

ॐ कालाय नम: आचमनीयं समर्पयामि
( एक आचमनी जल अर्पण करे )

ॐ कलविकरणाय नम: चंदनं समर्पयामि

ॐ बलविकरणाय नम: अक्षतान समर्पयामि

ॐ बलाय नम: पुष्पं समर्पयामि

ॐ बलप्रमथनाय नम: धूपं समर्पयामि

ॐ सर्वभूतदमनाय नम: दीपं समर्पयामि

ॐ मनोन्मयाय नम: नैवेद्यं निवेदयामि

ॐ शिवाय नम: तांबुलं समर्पयामि

ॐ महादेवाय नम: दक्षिणां समर्पयामि

ॐ महेश्वराय नम: कर्पूर आरार्तिक्यं समर्पयामि

ॐ नीलकंठाय नम: नमस्कारं समर्पयामि

अब अंग पूजन के लिए पुष्प अक्षत अर्पण करते जाए

ॐ ईशानाय नमः पादौ पूजयामि
ॐ शंकराय नमः जंघे पूजयामि
ॐ शूलपाणये नमः गुल्फौ पूजयामि
ॐ शम्भवे नमः कटी पूजयामि
ॐ स्वयम्भुवे नमः गुह्यं पूजयामि
ॐ महादेवाय नमः नाभिम पूजयामि
ॐ विश्वकर्त्रे नमः उदरम् पूजयामि
ॐ सर्वतोमुखाय नमः पार्श्वयोः पूजयामि
ॐ स्थाणवे नमः स्तनौ पूजयामि
ॐ नीलकण्ठाय नमः कण्ठे पूजयामि
ॐ शिवात्मने नमः मुखम पूजयामि
ॐ त्रिनेत्राय नमः नेत्रे पूजयामि
ॐ नागभूषणाय नमः शिरः पूजयामि
ॐ देवाधिदेवाय नमः सर्वांगे पूजयामि

अब एकादश आवरण देवता का पूजन करे। पुष्प अक्षत और एक आचमनी जल अर्पण करते जाए

1. ॐ अघोराय नमः अघोर श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
2. ॐ पशुपतये नमः पशुपति श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
3. ॐ शिवाय नमः शिव श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
4. ॐ विरुपाय नमः विरूप श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
5. ॐ विश्वरूपाय नमः विश्वरूप श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
6. ॐ त्र्यम्बकाय नमः त्र्यम्बक श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
7. ॐ भैरवाय नमः भैरव श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
8. ॐ कपर्दिने नमः कपर्दिनी श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
9. ॐ शूलपाणये नमः शूलपाणि श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
10. ॐ ईशानाय नमः ईशान श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
11 . ॐ महेशाय नम महेश श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः

*अब एकादश शक्तियों का पूजन करे*

1. ॐ उमायै नमः उमा श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
2. ॐ शंकरप्रियायै नमः शंकरप्रिया श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
3. ॐ पार्वत्यै नमः पार्वती श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
4. ॐ गौर्यै नमः गौरी श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
5. ॐ काल्यै नमः काली श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
6. ॐ कालिन्द्यै नमः कालिंदी श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
7. ॐ कोटर्यै नमः कोटरी श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
8. ॐ विश्वधारिण्यै नमः विश्वधारिणी श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
9. ॐ ह्रां नमः ह्रां शक्ति श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
10. ॐ ह्रीम नमः ह्रीं शक्ति श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नम
11. ॐ गंगा देव्यै नमः गंगा देवी श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः

अब शिव गणो का पूजन करे

ॐ गणपतये नमः
ॐ कार्तिकेयाय नमः
ॐ पुष्पदन्ताय नमः
ॐ कपर्दिने नमः
ॐ भैरवाय नमः
ॐ शूलपाणये नमः
ॐ ईश्वराय नमः
ॐ दंडपाणये नमः
ॐ नन्दिने नमः
ॐ महाकालाय नमः

अब एकादश रूद्र का पूजन करे

ॐ अघोराय नमः
ॐ पशुपतये नमः
ॐ शर्वाय नमः
ॐ विरूपाक्षाय नमः
ॐ विश्वरूपिणे नमः
ॐ त्र्यम्बकाय नमः
ॐ कपर्दिने नमः
ॐ भैरवाय नमः
ॐ शूलपाणये नमः
ॐ ईशानाय नमः
ॐ महेश्वराय नमः

अब शिव के आठ रूपों का पूजन करे

ॐ भवाय क्षितिमूर्तये नमः
ॐ शर्वाय जलमूर्तये नमः
ॐ रुद्राय अग्निमूर्तये नमः
ॐ उग्राय वायुमूर्तये नमः
ॐ भीमाय आकाशमूर्तये नमः
ॐ पशुपतये यजमान मूर्तये नमः
ॐ महादेवाय सोममूर्तये नमः
ॐ ईशानाय सूर्यमूर्तये नमः

अब बिल्व पत्र लेकर अर्पित करे

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रम च त्रिधायुधम्
त्रिजन्मपाप संहारम एक बिल्वं शिवार्पणम

अब द्वादश ज्योतिर्लिंग का पूजन बेल या पुष्प अक्षत अर्पण करके करे ..

१. ॐ सौराष्ट्रदेशे विशदे अतिरम्ये ज्योतिर्मयं चंद्रकला वसंतम !
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णम तं सोमनाथं शरणम प्रपद्ये !!

ॐ श्री सोमनाथाय नमः !

२. ॐ श्रीशैलश्रृंगे विबुधातिसंगे तुलाद्रितुन्गेपि मुदा वसंतम !
तमर्जुनं मल्लिकपुर्वमेकम नमामि संसार समुद्रसेतुं !!

ॐ श्री मल्लिकार्जुनाय नमः !

३. ॐ अवन्तिकायाम विहितावतारं भक्तिप्रदानाय च सज्जनाम !
अकालमृत्यौ परिरक्षणार्थं वन्देमहाकाल महासुरेशम !!

ॐ श्री महाकालेश्वराय नमः !

४. ॐ कावेरीकानर्मदयो: पवित्रे समागमे सज्जन तारणाय !
सदैव मांधातृपदे वसंतमोंकारमीशं शिवमेकमीडे !!

ॐ श्री ओंकारेश्वराय नमः !

५. ॐ पूर्वोत्तरे प्रज्वलिका निधाने सदा वसन्तम गिरजासमेतम !
सुरासुरैराधित पादपद्मं श्रीवैद्यनाथं शरणं प्रपद्ये !!

ॐ श्री वैद्यनाथाय नमः !

६. ॐ याम्ये सदंगे नगरे अतिरम्ये विभूषितांग विविधैश्च भोगै: !
सदभक्तिमुक्तिम प्रदमेकमीशं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये !!

ॐ श्री नागनाथाय नमः

७. ॐ महाद्रिपार्श्वे च तटे रमंतं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रे !
सुरासुरैयक्षमहोरगादयै केदारमीशं शिवमेकमीडे !!

ॐ श्री केदारनाथाय नमः !

८. ॐ सह्याद्रिशीर्षे विमलेवसंतं गोदावरीतीर पवित्रदेशे !
यद् दशनात पावकमाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे !!

ॐ श्री त्र्यम्बकेश्वराय नमः !

९. ॐ सुताम्रपर्णी जलराशियोगे निबद्धसेतुं विशिखैरसंख्ये: !
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तत रामेश्वराख्यं नियतं नमामि !!

ॐ श्री रामेश्वराय नमः !

१०. ॐ यं डाकिनी शाकिनीका निसेव्यमानं पिशिताशनैश्च !
सदैव भीमादिपद प्रसिद्धं तं शंकरं भक्तहितं नमामि !!

ॐ श्री भीमाशंकराय नमः !

११. ॐ सानंदमानंदवने वसंतं आनंदकंदं हृतपापवृन्दम !
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये !!

ॐ श्री काशीविश्वनाथाय नमः !

१२. ॐ इलापुरे रम्यविशालके अस्मिन समुल्लसंतं च जगदवरेण्यं !
वन्दे महोदारतर स्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शिवमेकमीडे !!
ॐ श्री घृष्णेश्वराय नमः !

अनेन द्वादश ज्योतिर्लिंग पूजनेन श्री साम्बसदाशिव देवता प्रीयंतां न मम !!

महाशिवरात्रीपर शिवजी को विशेष अर्घ्य प्रदान करे .. पानी मे चंदन अष्टगंध कपूर इत्र ( अत्तर ) और बेल पत्री मिलाकर एकेक आचमनी जल अर्पण करते जाये

श्री सांबसदाशिव प्रीत्यर्थं महाशिवरात्री पूजा संपूर्ण फल प्राप्त्यर्थं अर्घ्य प्रदानं अहं करिष्ये

ॐ नम: शिवाय शांताय सर्वपापहराय च
शिवरात्रौ मयादत्तं गृहाण अर्घ्यम मम प्रभो !!

मयाकृतान्यनेकानि पापानिहर शंकर
गृहाण अर्घ्यम मम उमाकांत शिवरात्रौ प्रसीद मे !!

शिवरात्रि व्रतं देवपूजा जप परायण:
करोमि विधिवत दत्तं गृहाण अर्घ्यम नमस्तु ते !!

दु:खदारिद्र्यभारश्च दग्धोहं पार्वतीपते
त्रायस्व मां महादेव गृहाण अर्घ्यम नमोस्तु ते !!

शिवरात्रि व्रतं देवपूजा जप परायण:
करोमि विधिवत दत्तं गृहाण अर्घ्यम नमोस्तु ते !!

व्योमकेश नमस्तुभ्यं व्योमात्मा व्योमरुपिणे
नक्षत्ररुपिणे तुभ्यं ददाम्यर्घ्यं नमोस्तुते !!

कैलाश निलय शंभो पार्वतीप्रिय वल्लभ
त्रैलोक्यतमविध्वंसिन गृहाणर्घ्यं सदाशिव

कालरुद्र शिव शंभो कालात्मन त्रिपुरांतक
दुरितग्न सुरश्रेष्ठ गृहाणर्घ्यं सदाशिव !!

आकाशाद्याशरीराणि ग्रहनक्षत्रमालिनि
सर्वसिद्धिनिवासार्तं ददामर्घ्य सदाशिव !!

श्री सांबसदाशिवाय नम:
सांबसदाशिवाय इदमर्घ्यं दत्तं न मम

उमादेवी शिवार्धांगी जगन्मातृ गुणात्मिके
त्राहि मां देवि सर्वेषि गृहाणर्घ्यं नमोस्तुते !!

श्री पार्वत्यै नम:
पार्वत्यै इदमर्घ्यं दत्तं न मम

श्री गुणात्मन त्रिलोकेश: ब्रम्हा विष्णु शिवात्मक !
अर्घ्यं चेदं मया दत्तं गृहाण गणनायक !!

श्री गणपतये नम:
गणपतये इदमर्घ्यं दत्तं न मम

सेनाधिप सुरश्रेष्ठ पार्वतीप्रियनंदन
गृहाणर्घ्यं मया दत्तं नमस्ते शिखिवाहन !!

श्री स्कंदाय नम:
स्कंदाय इदमर्घ्यं दत्तं न मम

वीरभद्र महावीर विश्व ज्ञान वर प्रद
इदमर्घ्यं प्रदास्यामि संग्रहाण शिवप्रिय !!
श्री वीरभद्राय नम :
वीरभद्राय इदमर्घ्यं दत्तं न मम

धर्मस्त्वं वृषरुपेण जगदानंदकारक
अष्टमुर्तेरधिष्ठानं अथ: पाहि सनातन !!
श्री वृषभाय नम:
वृषभाय इदमर्घ्यं दत्तं न मम

चंडीश्वर महादेव त्राहि माम कृपाकर
इदमर्घ्यं प्रदास्यामि प्रसन्ना वरदा भव !!
श्री चंडीश्वराय नम:
चंडीश्वराय इदमर्घ्यं दत्तं न मम

अनेन महाशिवरात्री पूजांगत्वेन अर्घ्य प्रदानेन भगवान श्री सांब सदाशिव प्रीयताम

ॐ तत्सत
श्री सांबसदाशिवार्पणमस्तु !!

अब आप चाहे तो 108 बिल्व पत्र बिल्वार्चन प्रयोग के 108 श्लोक से अर्पण करे या फिर सिर्फ ॐ नमः शिवाय मन्त्र से अर्पण करे

फिर क्षमा प्रार्थना करे और हाथ मे पुष्प लेकर पूजन स्थान पर अर्पण करे

उग्रोमहेश्वरश्चैव शूलपाणि: पिनाकधृक
शिव: पशुपतिश्चैव महादेव विसर्जनम
ईशान: सर्वविद्यानाम ओंकारो भुवनेश्वर
कैलासं गच्छ देवेश पुनरागमनाय च

ॐ गच्छ गच्छ महादेव गच्छ गच्छ पिनाकधृकम
कैलासादि पीठं गच्छंतु यत्र तिष्ठति पार्वती !!

अनेन महाशिवरात्री पर्व काल पूजनेन श्री सांब सदाशिव देवतां प्रीयताम न मम

ॐ तत्सत
श्री सांब सदाशिवार्पणमस्तु !! और फिर अंत में निम्न मन्त्र का यथाशक्ति जाप करे

ह्रीं ॐ नमः शिवाय ह्रीं: मेरे सदगुरुदेव ने इस मंत्र के बारे मे कहा था की यह मंत्र अगर नित्य सदैव चलते फिरते किये जाये तो शिवत्त्व की प्राप्ति संभव है .

ॐ नमः शिवाय: फिर अगर हो सके तो आरती करे और पूजन समाप्त करे।
महाशिवरात्री पर अष्टोत्तरशत बिल्वार्चन प्रयोग
———-
*108 बेलपत्र अर्पण करने की साधना*

अभी महाशिवरात्री आ रही है .. भगवान महादेव के भक्तो के लिये सबसे बडा दिन .. इस भगवान महादेव के भक्त अलग अलग तरिको से अपने प्रिय भोलेनाथ को पूजते है ..

भगवान शिव संबंधित जितनी आध्यात्मिक साधनाये है उनमे यह एक सबसे महत्वपूर्ण सटीक , दुर्लभ और फलदायी प्रयोग है।

*108 बिल्व पत्र का 108 श्लोकों के माध्यम से बिल्वार्चन प्रयोग।*

अगर आपके पास पारद शिवलिंग है तो बहुत अच्छा क्योंकि पारद शिवलिंग पर यह साधना अनेक संकटोंका निवारण कर देगी। अगर नहीं है तो किसी भी शिवलिंग या रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला पर करे। इसे महाशिवरात्री के रात के महानिशा काल में जो की महाशिवरात्री का पर्व काल होता है उसमे जरूर करे। या प्रदोष काल मे या अगर ये संभव न हो तो जब आप अपने फुर्सत के समय मे पूजन कर सके तब करे, और फिर कभी भी मौके पर या किसी भी सोमवार या प्रदोष पर्व पर या श्रावण सोमवार को संपन्न कर सकते है।

सर्व प्रथम 108 बेल या कुछ ज्यादा मात्रा मे बिल्वपत्र जमा करे। सामान्य पूजन सामग्री जमा करे, अगर हो सके तो चन्दन से हर बेलपत्र के हर दल पर ॐ लिखे। या फिर वैसे ही उपयोग कर सकते है। इस प्रयोग को आप बृहत शिव पूजन मे पूजन करने के अंत मे करे या इसे आप अलग से एक प्रयोग के हिसाब से कर सकते है ..

शिवजी का ध्यान आवाहन कर पंचोपचार या षोडश उपचार पूजन करे।

ॐ नमः शिवाय इस मन्त्र से पूजन कर सकते है।

श्री साम्ब सदाशिवाय नमः पंचोपचार पूजनं समर्पयामि

पंचोपचार पूजन हेतु गंध अक्षत पुष्प धुप दीप नैवेद्य अर्पण करे, फिर दाए हाथ में जल लेकर बिल्वार्चन प्रयोग हेतु संकल्प करे, जिन्हे संस्कृत मे संकल्प करना मुश्किल लग रहा हो वे अपना नाम गोत्र आदि का स्मरण कर जिस कार्य हेतु या मनोकामना हेतु प्रयोग कर रहे है उसका स्मरण कर जल छोड़ दे।

संकल्प: ॐ विष्णु: विष्णु: विष्णु : अद्येत्यादि देशकालौ संकिर्त्य अमुक गोत्रोपन्न अमुक शर्माहं मम जन्मराशै: वर्तमान नवग्रहजन्य पीडा परिहारार्थं दैहिक दैविक भौतिक त्रिविध ताप पाप उपशमनार्थं धन धान्य लक्ष्मि प्राप्त्यर्थं अस्थिर लक्ष्मी चिरकाल पर्यंत संरक्षणार्थं पूर्वजन्म पुण्योदय फलस्वरुपेण प्राप्ते पुण्य अवसरे जन्म जन्मांतर कृत समस्त पातक उपपातक क्षयार्थं सांबसदाशिव प्रीत्यर्थं अष्टोत्तरशत स्तोत्र मंत्रै: बिल्वपत्र अर्चनं करिष्ये ! अब विनियोग पढकर एक आचमनी जल पात्र मे छोडे

विनियोग :-
ॐ अस्य श्री बिल्वपत्रार्पण स्तोत्र मंत्रस्य
ऋषभ शिव योगीश्वर ऋषि: सांबसदाशिव
देवता अनुष्टुप छंद: ॐ बीजं नम: शक्ति:
शिवाय इति कीलकं अष्टोत्तरशत स्तोत्र मंत्रै: बिल्वपत्र समर्पणे विनियोग:

अगर विनियोग का मंत्र पढना ना आये तो कोइ बात नही आप सीधे 108 बेल अर्पण करने के मंत्र पढते हुये बेल अर्पण करना शुरु करे ..

बिल्वार्चन प्रयोग के 108 श्लोक में से एकेक का उच्चारण करते हुए एकेक बिल्व पत्र अर्पण करते जाए। इस प्रयोग मे आखरी कुछ श्लोक फलश्रुति के है .. आप इनके साथ भी बेलपत्र अर्पण सकते है .. मेरे पास इस प्रयोग की दो तीन लिपिया है .. कुछ श्लोको मे कुछ शब्द अलग है .. जो सटिक लगी उसे प्रस्तुत कर रहे है .. विद्वान जन त्रूटी को क्षमा करे ..

अगर आप के साथ पति पत्नी या कोई साथी है तो एक व्यक्ती श्लोक का उच्चारण करे और दूसरा बेल अर्पण करते जाए। बेल अर्पण करते समय मन में ॐ नमः शिवाय का जाप निरन्तर चलते रहे, फिर अंत में क्षमा प्रार्थना करे और चढ़ाया हुआ एक बेल पत्र ग्रहण कर तिजोरी में रखे। लक्ष्मी अखंड रहेगी।

*अष्टोत्तरशत बिल्वार्चन प्रयोग* ◆

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम
त्रिजन्मपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 1 !!

त्रिशाखैर्बिल्वपत्रैश्च अच्छिद्रै:कोमलै: शुभै:
तवपूजां करिष्यामि एकबिल्वंशिवार्पणम !! 2!!

सर्वत्रैलोक्य कर्तारं सर्वत्रैलोक्य पालनम
सर्वत्रैलोक्यहर्तारं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 3!!

नागाधिराजवलयं नागहारेण भूषितं
नागकुण्डलसंयुक्तं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 4 !!

अक्षमालाधरं रुद्रं पार्वतीप्रियवल्लभं
चंद्रशेखरमीशानं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 5 !!

त्रिलोचनं दशभुजं दुर्गादेहार्धधारिणं
विभूत्याभ्यर्चितो देवं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 6!!

त्रिशूलधारिणं देवं नागाभरणसुंदरं
चंद्रशेखरमीशानं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 7!!

गंगाधर अंबिकानाथं फणिकुण्डलमंडितं
कालकालं गिरिशं च एकबिल्वं शिवार्पणम !! 8!!

शुद्धस्फटिकसंकाशं शितिकण्ठ कृपानिधिं
सर्वेश्वरं सदाशांतं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 9 !!

सच्चिदानंदरुपं च परानंदमयं शिवं
वागीश्वरं चिदाकाशं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 10 !!

शिपिविष्टं सहस्त्राक्षं कैलासाचलवासिनं
हिरण्यबाहुं सेनान्यं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 11 !!

अरुणं वामनंतारं वास्तव्यं चैव वास्तवं
ज्येष्ठंकनिष्ठं गौरीशं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 12 !!

हरिकेशं सनंदीशं उच्चैर्घोषं सनातनं
अघोररुपं कर्मं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 13 !!

पूर्वजापरजंयाम्यं सूक्ष्मतस्करनायकं
नीलकंठं जघन्यं च एकबिल्वंशिवार्पणम !! 14 !!

सुराश्रयं विषहरं वर्मिणं च वरुथिनं
महासेनं महावीरं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 15 !!

कुमारं कुशलं कूप्यं वदान्यं च महारथं
तौर्यातौर्यं च देव्यंच एकबिल्वंशिवार्पणम !! 16 !!

दशकर्णं ललाटाक्षं पंचवक्त्रं सदाशिवं
अशेषपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 17 !!

नीलकण्ठं जगद्वंद्यं दीनानाथं महेश्वरं
महापापहरं शंभुं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 18 !!

चूडामणिकृतविधुं वलयीकृत वासुकिं
कैलासनिलयं भीमं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 19 !!

कर्पूरकुंदधवलं नरकार्णवतारकं
करुणामृतसिंधुश्च एकबिल्वं शिवार्पणम !! 20 !!

महादेवं महात्मानं भुजंगाधिपकंकणं
महापापहरं देवं एकबिल्वंशिवार्पणम ! ! 21 !!

भूतेशं खण्डपरशुं वामदेवं पिनाकिनं
वामेशक्तिधरं श्रेष्ठं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 22 !!

कालेक्षणं विरुपाक्षं श्रीकण्ठं भक्तवत्सलं
नीललोहित खट्वांगं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 23 !!

कैलासवासिनं भीमं कठोरं त्रिपुरांतकं
वृषांकं वृषभारुढं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 24 !!

सामप्रियं सर्वमयं भस्मोद्धुलित विग्रहं
मृत्युंजयं लोकनाथं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 25 !!

दारिद्र्यदु:खहरणं रविचंद्रानलेक्षणं
मृगपाणिं चंद्रमौळिं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 26 !!

सर्वलोकमयाकारं सर्वलोकैकसाक्षिणं
निर्मलं निर्गुणाकारं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 27 !!

सर्वतत्वात्मकं सांबं सर्वतत्त्वविदूरकं
सर्वतत्त्वस्वरुपं च एकबिल्वंशिवार्पणम !! 28 !!

सर्वलोकगुरुं स्थाणुं सर्वलोकवरप्रदं
सर्वलोकैकनेत्रं च एकबिल्वंशिवार्पणम !! 29 !!

मन्मथोद्धरणं शैवं भवभर्गम परात्परं
कमलाप्रियपूज्यं च एकबिल्वंशिवार्पणम !! 30 !!

तेजोमयं महाभीमं उमेशं भस्मलेपनं
भवरोगविनाशं च एकबिल्वंशिवार्पणम !! 31 !!

स्वर्गापवर्गफलदं रघुनाथवरप्रदं
नगराजसुताकांतं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 32 !!

मंजीरपादयुगलं शुभलक्षण लक्षितं
फणिराज विराजंच एकबिल्वंशिवार्पणम !! 33 !!

निरामयं निराधारं निस्संगं निष्प्रपंचकं
तेजोरुपं महारौद्रं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 34 !!

सर्वलोकैक पितरं सर्वलोकैक मातरं
सर्वलोकैक नाथंच एकबिल्वंशिवार्पणम !! 35 !!

चित्रांबरं निराभासं वृषभेश्वर वाहनं
नीलग्रीवं चतुर्वक्त्रं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 36 !!

रत्नकंचुक रत्नेशं रत्नकुंडलमंडितं
नवरत्न किरिटंच एकबिल्वंशिवार्पणम !! 37 !!

दिव्यरत्नांगुली स्वर्णं कण्ठाभरणभूषितं
नानारत्नमणिमयं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 38 !!

रत्नांगुलीयं विलसत करशाखा नखप्रभं
भक्तमानस गेहं च एकबिल्वंशिवार्पणम !! 39 !!

वामांगभागविलसद अंबिकावीक्षणप्रियं
पुण्डरिकमिवाक्षं च एकबिल्वंशिवार्पणम !! 40 !!

संपूर्णकामदं सौख्यं भक्तेष्टफलकारणं
सौभाग्यदं हितकरं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 41 !!

नानाशास्त्र गुणोपेतं स्फुरन्मंगलविग्रहं
विद्या विभेदरहितं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 42 !!

अप्रमेयगुणाधारं वेदकृद रुपविग्रहं
धर्माधर्म प्रवृत्तं च एकबिल्वंशिवार्पणम !! 43 !!

गौरीविलाससदनं जीवजीवपितामहं
कल्पांतभैरवं शुभ्रं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 44 !!

सुखदं सुखनाशं च दु:खदं दु:खनाशनं
दु:खावतारं भद्रं च एकबिल्वंशिवार्पणम !! 45 !!

सुखरुपं रुपनाशं सर्वधर्मफलप्रदं
अतिंद्रियं महामायं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 46 !!

सर्वपक्षिमृगाकारं सर्वपक्षिमृगाधिपं
सर्वपक्षिमृगाधारं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 47 !!

जीवाध्यक्षं जीववंद्यं जीवजीवनरक्षकं
जीवकृतजीवहरणं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 48 !!

विश्वात्मानं विश्ववंद्यं वज्रात्मा वज्रहस्तकं
वज्रेशं वज्रभूषं च एकबिल्वंशिवार्पणम !! 49 !!

गणाधिपं गणाध्यक्षं प्रलयानलनाशकं
जितेंद्रियं वीरभद्रं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 50 !!

त्र्यंबकं मृडं शूरं अरिषडवर्ग नाशनं
दिगंबरं क्षोभनाशं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 51 !!

कुंदेंदु शंख धवलं भगनेत्रविदुज्वलं
कालाग्निरुद्रं सर्वज्ञं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 52 !!

कंबुग्रीवं कंबुकण्ठं धैर्यदं धैर्यवर्धकं
शार्दूलचर्मवसनं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 53 !!

जगदुत्पत्तीहेतुं च जगदप्रलयकारणं
पूर्णानंदस्वरुपं च एकबिल्वंशिवार्पणम !! 54 !!

सर्गकेशं महत्तेजं पुण्यश्रवणकीर्तनं
ब्रम्हांडनायकं तारं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 55 !!

मंदारमूलनिलयं मंदारकुसुमप्रियं
वृंदारकप्रियतरं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 56 !!

महेंद्रियं महाबाहुं विश्वासपरिपूरकं
सुलभासुलभं लभ्यं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 57 !!

बीजाधारं बीजरुपं निर्बीज बीजवृद्धिदं
परेशं बीजनाशं च एकबिल्वंशिवार्पणम !! 58 !!

युगाकारं युगाधीशं युगकृत युगनाशकं
परेशं बीजनाशं च एकबिल्वंशिवार्पणम !! 59 !!

धूर्जटिं पिंगलजटं जटामंडलमण्डितं
कर्पूरगौरं गौरीशं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 60 !!

सुरावासं जनावासं योगीशं योगिपुंगवं
योगदं योगिनांसिंहं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 61!!

उत्तमानुत्तमं तत्त्वम अंधकासुरसूदनं
भक्तकल्पद्रूमस्तोमं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 62 !!

विचित्रमाल्यवसनं दिव्यचंदनचर्चितं
विष्णुब्रम्हादिवंद्यश्च एकबिल्वंशिवार्पणम !! 63 !!

कुमारं पितरं देवं स्थितचंद्रकलानिधिम
ब्रम्हसत्यं जगन्मित्रं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 64 !!

लावण्यमधुराकारं करुणारसवारिधिम
भ्रूवोर्मध्येसहस्त्रार्चि एकबिल्वंशिवार्पणम !! 65 !!

जटाधरं पावकाक्षं वृक्षेशं भूमिनायकं
कामदं सर्वदागम्यं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 66 !!

शिवं शांतं उमानाथं महाध्यानपरायणं
ज्ञानप्रदं कृत्तिवासं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 67 !!

वासुकि उग्रहारं च लोकानुग्रहकारणं
ज्ञानप्रदं कृत्तिवासं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 68 !!

शशांकधारिणं भर्गं सर्वलोकैकशंकरं
शुद्धंचशाश्वतं नित्यं एकबिल्वंशिवार्पणम !! 69 !!

शरणागतदीनार्ति परित्राण परायणं
गंभीरं च वषटकारं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 70 !!

भोक्तारं भोजनं भोज्यं जेतारं जितमानसं
करणंकारणं जिष्णुं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 71 !!

क्षेत्रज्ञं क्षेत्रपालं च परार्थैकप्रयोजनं
व्योमकेशं भीमवेषं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 72 !!

भवघ्नं तरुणोपेतं क्षोधिष्टम यमनाशकं
हिरण्यगर्भं हेमांगं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 73 !!

दक्षं चामुंडजनकं मोक्षदं मोक्षनायकं
हिरण्यदं हेमरुपं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 74 !!

महाश्मशान निलयं प्रच्छन्नस्फटिकप्रभं
वेदास्यं वेदरुपं च एकबिल्वं शिवार्पणम !! 75 !!

स्थिरं धर्मं उमानाथं ब्रम्हण्यं च आश्रयं विभुं
जगन्निवासं प्रथमं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 76 !!

रुद्राक्षमालाभरणं रुद्राक्षप्रियवत्सलं
रुद्राक्षभक्तसंस्तोमं एकबिल्वं शिवार्पणम !! 77 !!

फणींद्र विलसत कंठं भुजंगाभरणप्रियं
दक्षाध्वरविनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम !! 78

Related posts

महाशिवरात्रि बिशेष: ऐसे करें शिव का अर्चन, होगी हर मनोकामना पूरी

Bundeli Khabar

17 लाख बर्ष प्राचीन हनुमान मंदिर जहाँ आये थे स्वयं भगवान राम

Bundeli Khabar

हनुमान जयंती पर कीजिए यह उपाय: होंगे मालामाल

Bundeli Khabar

Leave a Comment

error: Content is protected !!