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May 6, 2024
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अक्षय तृतीया पर्व महत्व एवं इतिहास

परशुराम जयंती हिन्दू पंचांग के वैशाख माह की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है अक्षय तृतीया को परशुराम जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन दिये गए पुण्य का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता . अक्षय तृतीया से त्रेता युग का आरंभ माना जाता है. इस दिन का विशेष महत्व है.

भगवान परशुराम का इतिहास कथा एवम जयंती

भारत में हिन्दू धर्म को मानने वाले अधिक लोग हैं. मध्य कालीन समय के बाद जब से हिन्दू धर्म का पुनुरोद्धार हुआ है, तब से परशुराम जयंती का महत्व और अधिक बढ़ गया है. इस दिन उपवास के साथ साथ जुलूस, सत्संग भी सम्पन्न किए जाते हैं.

परशुराम शब्द का अर्थ –

परशुराम दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है. परशु अर्थात “कुल्हाड़ी” तथा “राम”. इन दो शब्दों को मिलाने पर “कुल्हाड़ी के साथ राम” अर्थ निकलता है. जैसे राम, भगवान विष्णु के अवतार हैं, उसी प्रकार परशुराम भी विष्णु के अवतार हैं. इसलिए परशुराम को भी विष्णुजी तथा रामजी के समान शक्तिशाली माना जाता है.परशुराम के अनेक नाम हैं. इन्हें रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, भृगुवंशी (ऋषि भृगु के वंशज), जमदग्न्य (जमदग्नि के पुत्र) के नाम से भी जाना जाता है.

कौन थे परशुराम –

परशुराम ऋषि जमादग्नि तथा रेणुका के पांचवें पुत्र थे. ऋषि जमादग्नि सप्तऋषि में से एक ऋषि थे.भगवान विष्णु के अवतार के रूप में परशुराम पृथ्वी पर तरित हुए.परशुराम वीरता के साक्षात उदाहरण थे.हिन्दू धर्म में परशुराम के बारे में यह मान्यता है कि वे त्रेता युग एवं द्वापर युग से अमर हैं.परशुराम की त्रेता युग दौरान रामायण में तथा द्वापर युग के दौरान महाभारत में अहम भूमिका है. रामायण में सीता के स्वयंवरमें भगवान राम द्वारा शिवजी का पिनाक धनुष तोड़ने पर परशुराम सबसे अधिक क्रोधित हुए थे.

परशुरामजी के जन्म की मान्यताएँ :

परशुराम के जन्म एवं जन्मस्थान के पीछे कई मान्यताएँ एवं अनसुलझे सवाल है. सभी की अलग अलग राय एवं अलग अलग विश्वास हैं. भार्गव परशुराम को हाइहाया राज्य, जो कि अब मध्य प्रदेश के महेश्वर नर्मदा नदी के किनारे बसा है, वहाँ का तथा वहीं से परशुराम का जन्म भी माना जाता है.एक और मान्यता के अनुसार रेणुका तीर्थ पर परशुराम के जन्म के पूर्व जमदग्नि एवं उनकी पत्नी रेणुका ने शिवजी की तपस्या की. उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर शिवजी ने वरदान दिया और स्वयं विष्णु ने रेणुका के गर्भ से जमदग्नि के पांचवें पुत्र के रूप में इस धरती पर जन्म लिया. उन्होनें अपने इस पुत्र का नाम “रामभद्र”रखा.परशुराम के अगले जन्म के पीछे बहुत सी दिलचस्प मान्यता है. एसा माना जाता है कि वे भगवान विष्णु के कल्कि” के रूप में फिर एक बार पृथ्वी पर अवतरित होंगे. हिंदुओं के अनुसार यह भगवान विष्णु का धरती पर अंतिम अवतार होगा. इसी के साथ कलियुग की समाप्ति होगी.

परशुराम का परिवार एवं कुल :-

परशुराम सप्तऋषि जमदग्नि और रेणुका के सबसे छोटे पुत्र थे.ऋषि जमदग्नि के पिता का नाम ऋषि ऋचिका तथा ऋषि ऋचिका, प्रख्यात संत भृगु के पुत्र थे.ऋषि भृगु के पिता का नाम च्यावणा था. ऋचिका ऋषि धनुर्वेद तथा युद्धकला में अत्यंत निपुण थे. अपने पूर्वजों कि तरह ऋषि जमदग्नि भी युद्ध में कुशल योद्धा थे.जमदग्नि के पांचों पुत्रों वासू, विस्वा वासू, ब्रिहुध्यनु, बृत्वकन्व तथा परशुराम में परशुराम ही सबसे कुशल एवं निपुण योद्धा एवं सभी प्रकार से युद्धकला में दक्ष थे.परशुराम भारद्वाज एवं कश्यप गोत्र के कुलगुरु भी माने जाते हैं.

भगवान परशुराम अस्त्र-

परशुराम का मुख्य अस्त्र “कुल्हाड़ी” माना जाता है. इसे फारसा, परशु भी कहा जाता है. परशुराम ब्राह्मण कुल में जन्मे तो थे, परंतु उनमे युद्ध आदि में अधिक रुचि थी. इसीलिए उनके पूर्वज च्यावणा, भृगु ने उन्हें भगवान शिव की तपस्या करने की आज्ञा दी. अपने पूर्वजों कि आज्ञा से परशुराम ने शिवजी की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया. शिवजी ने उन्हें वरदान मांगने को कहा. तब परशुराम ने हाथ जोड़कर शिवजी की वंदना करते हुए शिवजी से दिव्य अस्त्र तथा युद्ध में निपुण होने कि कला का वर मांगा. शिवजी ने परशुराम को युद्धकला में निपुणता के लिए उन्हें तीर्थ यात्रा की आज्ञा दी. तब परशुराम ने उड़ीसा के महेन्द्रगिरी के महेंद्र पर्वत पर शिवजी की कठिन एवं घोर तपस्या की.उनकी इस तपस्या से एक बार फिर शिवजी प्रसन्न हुए. उन्होनें परशुराम को वरदान देते हुए कहा कि परशुराम का जन्म धरती के राक्षसों का नाश करने के लिए हुआ है. इसीलिए भगवान शिवजी ने परशुराम को, देवताओं के सभी शत्रु, दैत्य, राक्षस तथा दानवों को मारने में सक्षमता का वरदान दिया.परशुराम युद्धकला में निपुण थे. हिन्दू धर्म में विश्वास रखने वाले ज्ञानी, पंडित कहते हैं कि धरती पर रहने वालों में परशुराम और रावण के पुत्र इंद्रजीत को ही सबसे खतरनाक, अद्वितीय और शक्तिशाली अस्त्र – ब्रह्मांड अस्त्र, वैष्णव अस्त्र तथा पशुपत अस्त्र प्राप्त थे.परशुराम शिवजी के उपासक थे. उन्होनें सबसे कठिन युद्धकला “कलारिपायट्टू” की शिक्षा शिवजी से ही प्राप्त की. शिवजी की कृपा से उन्हें कई देवताओं के दिव्य अस्त्र-शस्त्र भी प्राप्त हुए थे.“विजया” उनका धनुष कमान था, जो उन्हें शिवजी ने प्रदान किया था.

टांगीनाथ-भगवान परशुराम की तपोस्थली, जहां पर गड़ा है भगवान परशुराम का फरसा

टांगीनाथ मंदिर को लेकर कई दिलचस्प कथाएं कही जाती हैं. और मान्यता ये भी है कि यहां खुद भगवान शिव निवास करते हैं। इसे टांगीनाथ धाम भी कहा जाता है।
झारखंड के गुमला जिले में भगवान परशुराम का तप स्थल टांगीनाथ स्थित है. यह जगह रांची से करीब 150 किमी दूर है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम ने यहां शिव की घोर उपासना की थी. यहीं उन्होंने अपने परशु यानी फरसे को जमीन में गाड़ दिया था. इस फरसे की ऊपरी आकृति कुछ त्रिशूल से मिलती-जुलती है. यही वजह है कि यहां श्रद्धालु इस फरसे की पूजा के लिए आते है

जंगल में स्थ‍ित है मंदिर
झारखंड के इस बियावान और जंगली इलाके में शिवरात्रि के अवसर पर ही श्रद्धालु टांगीनाथ के दर्शन के लिए आते हैं. यहां स्थ‍ित एक मंदिर में भोलेनाथ शाश्वत रूप में हैं. स्थानीय आदिवासी ही यहां के पुजारी है और इनका कहना है कि यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है. मान्यता है महर्षि परशुराम ने यहीं अपने परशु यानी फरसे को गाड़ दिया था. स्थानीय लोग इसे त्रिशूल के रूप में भी पूजते हैं. आश्चर्य की बात ये है कि इसमें कभी जंग नहीं लगता. खुले आसमान के नीचे धूप, छांव, बरसात- का कोई असर इस त्रिशूल पर नहीं पड़ता है. आदिवासी बहुल ये इलाका पूरी तरह उग्रवाद से प्रभावित है. ऐसे में यहां अधिकतर सावन और महाशिवरात्रि के दिन ही यहां शिवभक्तों की भीड़ उमड़ती है.

*”अक्षय तृतीया” इसका महत्व क्यों है? जानिए कुछ महत्वपूर्ण जानकारिया

🙏-आज ही के दिन माँ गंगा का अवतरण धरती पर हुआ था।

🙏-महर्षी परशुराम का जन्म आज ही के दिन हुआ था।

🙏-माँ अन्नपूर्णा का जन्म भी आज ही के दिन हुआ था।

🙏-द्रोपदी को चीरहरण से कृष्ण ने आज ही के दिन बचाया था।

🙏- कृष्ण और सुदामा का मिलन आज ही के दिन हुआ था।

🙏- कुबेर को आज ही के दिन खजाना मिला था।

🙏-सतयुग और त्रेता युग का प्रारम्भ आज ही के दिन हुआ था।

🙏-ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण भी आज ही के दिन हुआ था।

🙏- प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री बद्री नारायण जी का कपाट आज ही के दिन खोला जाता है।

🙏- बृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर में साल में केवल आज ही के दिन श्री विग्रह चरण के दर्शन होते है अन्यथा साल भर वो वस्त्र से ढके रहते है।

🙏- इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था।

🙏- अक्षय तृतीया अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है कोई भी शुभ कार्य का प्रारम्भ किया जा सकता है।

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