37.2 C
Madhya Pradesh
March 29, 2024
Bundeli Khabar
Home » मतदान के पहले समझना होगा लुभावने वायदों का मर्म
दिल्ली

मतदान के पहले समझना होगा लुभावने वायदों का मर्म

भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया

                    चुनावी महासंग्राम में आम मतदाता को सब्जबाग दिखाने का क्रम थम नहीं रहा है। जिस क्षेत्र में ज्यों ही मतदान की तारीख नजदीक आती है त्यों ही वहां के लोगों को मुफ्त सुविधायें देने, तनख्वाह में बढोत्तरी करने और रोजगार मुहैया कराने के जैसे वायदों की होड लग जाती है। यह वायदा-षडयंत्र भी कोरोना की तरह रफ्तार पकडने लगा है। हरामखोरी की आदतें जड़ जमाने के लिए तैयार खडीं हैं। कथित गरीबों की सूची निरंतर बढती जा रही है। उसमें नामों को जोडने से लेकर कटने से बचाने तक का सुविधा शुल्क निर्धारित होने की चर्चायें जोरों पर हैं। वास्तिवकता तो यह है कि आज देश में शायद ही कोई गरीब होगा। गरीबों को भोजन देने की नियत से निकले व्यक्ति को पूरे शहर में घूमने के बाद भी यदि कोई व्यक्ति मिल जाये तो भाग्य ही है। भीख मांगने का धंधा करने वाले भी अब भोजन के स्थान पर रुपयों की मांग करने लगे हैं। कोरोना के नाम पर मुफ्त में बांटा जाने वाले सामान की खुले बाजार में बिक्री की अनेक घटनायें उजागर हो चुकीं हैं। फिर वायदों की मृगमारीचिका आखिर किसके लिए फैलाई जा रही है। निश्चित है कि हरामखोरी करने वाले मक्कार लोगों की जमात के लिए। इस पूरे मायाजाल के अंदर जाने पर स्पष्ट दिखाई देता है कि जितनी भी सुविधायें मुफ्त में देने की योजनायें लागू होतीं है, मंहगाई उतनी ही तेजी से बढ़ती है। वेतन बढाने के साथ ही वस्तुओं का मूल्य आसमान छूने लगता है। वस्तुओं के मूल्य निर्धारण के लिए उत्तरदायी विभाग ने कर्तव्यों के प्रति उपेक्षा और अधिकारों के प्रति सजगता दिखाने की अपनी आदत में तो अब चार चांद भी लगा लिये हैं।  वर्तमान में हालात यह है कि चार-पांच माह की कडी मेहनत से साग-भाजी उगाने वाले लोगों को एक किलो टमाटर के दाम केवल 10 रुपये मिल रहे हैं। बीच के दलाल उसी 10 रुपये के टमाटर को महानगरों में ऊंचे दामों पर बेच रहे हैं। छ: माह जी-तोड मेहनत करके आनाज पैदा करने वाले किसानों को एक किलो आनाज के बदले में मात्र 21 रुपये ही प्राप्त हो रहे हैं। जिन वस्तुओं से शरीर की सांसों को निरंतर रखा जा सकता है, आज उसी का वरदान देने वालों की हथेली पर चन्द सिक्के ही आ रहे हैं। उन्हें साइकिल का पंचर जुडवाने में पसीना आ जाता है। जबकि दूसरी ओर भौतिक सुख परोसने वालों की अट्टालिकायें तो अब शीशमहल में बदलती चलीं जा रहीं है। कारों का कारोबार तो दूर की बात आज दो पहिया वाहनों की कीमत ही लाख रुपये से ज्यादा हो गई है। इनमें निरंतर भरवाये जाने वाले पेट्रोल का खर्जा अलग से। मरम्मत, सर्विसिंग आदि की समस्यायें तो साथ में ही आतीं हैं। वास्तविकता यह है कि शरीर की आवश्यकता की पूर्ति कराने वालों को निरंतर दयनीय बनाने का कुचक्र चल रहा है जबकि शरीर को सुख के दलदल में फंसाने वालों को चांदी की कटोरियों में भोजन करते रहने के अवसर दिये जा रहे हैं। सरकारों व्दारा वोट बैंक में इजाफा करने हेतु एक खास वर्ग को मुफ्त में दी जाने वाली सुविधायें वास्तव में आने वाले समय में टैक्स की बाढ होती है। सरकारें अपने खजाने को टैक्स, जुर्माना, शुल्क के रूप में होने वाली आय से भरती है। इस धनराशि को जुटाने हेतु ईमानदार करदातों की मेहनत की कमाई में खूनी सैंंध लगाई जाती है। निरीह लोगों को कानून का डंडा मार-मारकर लहूलुहान करने की परम्परा हमारे देश में आक्रान्ताओं की आमद के साथ ही शुरू हो गई थी। स्वाधीनता के बाद से निरंतर उसी धर्म का निर्वहन किया जा रहा है। कुल मिलाकर ईमानदार करदाताओं का गला दबाने के बाद खून में सने पैसों से हरामखोरों के लिए भौतिक सुविधायें बांटने का ढिंढोरा है मुफ्त सुविधायें देने के चुनावी वायदे। राजनैतिक दलों के व्दारा वास्तविकता छुपाकर आम आवाम को निरंतर गुमराह किया जाता रहा है। लोगों की नासमझी का लाभ उठाने वाले लोग पर्दे के पीछे से स्वयं के लाभ का रास्त खोज निकालते हैं। नागरिकों को लाभ देने की प्रत्यक्ष घोषणा के पीछे उनका निजी स्वार्थ ठहाके लगा रहा होता है, जिसकी गूंज किसी को सुनाई नहीं देती। विकास के नाम पर एक ही रास्ते पर अनेक बार सडकों का निर्माण करने के प्रमाण आज भी जमीन के नीचे दफन हैं। यह दस्तावेज आने वाले समय के मोहनजोदडों हडप्पा जैसी खुदाई में निश्चित रूप से सामने आयेंगे। चुनावों के परिणाम आने के बाद नव-निर्वाचित सरकारें अपनी प्राथमिकताओं का गुप्त एजेन्डा तैयार करेंगी। सत्ताधारी दल की मानसिता से जुडे खास प्रशासनिक अधिकारियों की टीम को योजनायें बनाने, योजनाओं का मनचाहा क्रियान्वयन करने और पूर्व निर्धारित आंकडों का प्रचार करने की मुहिम में लगा दिया जायेगा ताकि निकट भविष्य में देश के अन्य स्थानों पर होने वाले चुनावों में माडल-रोल निभाया जा सके। ऐसे में सरकार के अनेक स्थाई कर्मचारी-अधिकारियों को लाभ के विस्ेित्रत अवसर प्राप्त होंगे। खद्दर के संरक्षण में चलने वाली आउट सोसिंग की कम्पनियों को सरकारी कामों में जोडा जायेगा। आउट सोसिंग के नाम पर बेराजगारी हटाने के नये आंकडे सार्वजनिक करके स्वयं की पीठ ठोकने हेतु सरकारी विज्ञापनों को होडिंग्स के रूप में जगह-जगह टंगवाया जायेगा। इस काम में भी कुछ खास एड-एजेन्सियां ही सक्रिय होंगी। मगर काम का बोझ केवल और केवल बेचारे संविदाकर्मियों या फिर दैनिक वेतन पर लगये गये लोगों की पीठ पर प्रताडना की हद तक लादा जायेगा। उनसे संविदा समाप्ति की धमकी और दैनिक काम न देने की प्रताडना देकर दिन-रात काम करने के लिए बाध्य किया जायेगा। भ्रष्टाचार के आरोपों का ढीकरा भी संविदाकर्मियों या दैनिक वेतन भोगियों पर फोड कर स्थाई कर्मचारी-अधिकारी बच निकलेंगे। अभी तक ऐसा ही होता आया है। अभी तक किसी भी सरकार ने स्थापित होने के बाद वेतन विसंगतियों, समान वेतन-समान काम, एक देश-एक कानून जैसी दिशा में दो कदम भी चलने का मन नहीं बनाया जबकि इन्हीं मूल मंत्रों से ही मंहगाई पर नियंत्रण, विभाजन पर अंकुश और स्वतंत्रता को स्वच्छन्दता में बदलने वालों पर कुठाराघात करने का काम हो सकता है। मगर देश की राजनीति ने तो आक्रान्ताओं का फूट डालो-राज करो की नीति को अपना गुरुमंत्र मान लिया है। ऐसे में मतदान से पहले समझना होगा लुभावने वायदों का मर्म, तभी हमें अपने निर्णय पर पछताना नहीं पडेगा। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

Related posts

सुप्रीम कोर्ट के बाहर आग लगाने वाली युवती की मौत

Bundeli Khabar

नोएडा उद्योगिक विकास प्राधिकरण के सीईओ डॉ. अरुणवीर सिंह ने दिया कैलाश मासूम को फिल्म प्रशिक्षण केंद्र बनाने का ऑफर

Bundeli Khabar

एसएसपी दिलीप सिंह ने तीन इनामी वांछित अपराधियों को अलग-अलग स्थानों से किया गिरफ्तार

Bundeli Khabar

Leave a Comment

error: Content is protected !!